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अथर्ववेद > काण्ड 16 > सूक्त 1

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  • अथर्ववेद - काण्ड 16/ सूक्त 1/ मन्त्र 9
    सूक्त - प्रजापति देवता - आसुरी पङ्क्ति छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त

    इन्द्र॑स्य वइन्द्रि॒येणा॒भि षि॑ञ्चेत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑स्य । व॒: । इ॒न्द्रि॒येण॑ । अ॒भि । सि॒ञ्चे॒त् ॥१.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रस्य वइन्द्रियेणाभि षिञ्चेत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रस्य । व: । इन्द्रियेण । अभि । सिञ्चेत् ॥१.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 1; मन्त्र » 9

    Meaning -
    That fire, let the flood of divine waters of the ‘cloud’ in the soul and in the power of the senses and mind sprinkle and consecrate into peace.

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