Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 13/ मन्त्र 41
    ऋषिः - विरूप ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    11

    आ॒दि॒त्यं गर्भं॒ पय॑सा॒ सम॑ङ्धि स॒हस्र॑स्य प्रति॒मां वि॒श्वरू॑पम्। परि॑वृङ्धि॒ हर॑सा॒ माभि म॑ꣳस्थाः श॒तायु॑षं कृणुहि ची॒यमा॑नः॥४१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ॒दि॒त्यम्। गर्भ॑म्। पय॑सा। सम्। अ॒ङ्धि॒। स॒हस्र॑स्य। प्र॒ति॒मामिति॑ प्रति॒ऽमाम्। वि॒श्वरू॑प॒मिति॑ वि॒श्वऽरू॑पम्। परि॑। वृ॒ङ्धि॒। हर॑सा। मा। अ॒भि। म॒ꣳस्थाः॒। श॒तायु॑ष॒मिति॑ श॒तऽआ॑युषम्। कृ॒णु॒हि॒। ची॒यमा॑नः ॥४१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आदित्यङ्गर्भम्पयसा समङ्धि सहस्रस्य प्रतिमाँ विश्वरूपम् । परि वृङ्धि हरसा माभि मँस्थाः शतायुषङ्कृणुहि चीयमानः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    आदित्यम्। गर्भम्। पयसा। सम्। अङ्धि। सहस्रस्य। प्रतिमामिति प्रतिऽमाम्। विश्वरूपमिति विश्वऽरूपम्। परि। वृङ्धि। हरसा। मा। अभि। मꣳस्थाः। शतायुषमिति शतऽआयुषम्। कृणुहि। चीयमानः॥४१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 13; मन्त्र » 41
    Acknowledgment

    भावार्थ - हे स्त्री-पुरुषांनो ! तुम्ही सुगंधित पदार्थ होमात टाकून सूर्यप्रकाश, जल व वायू यांना शुद्ध करून निरोगी बना. शंभर वर्षे जगणारी संताने निर्माण करा. जसे विद्युताग्नीने बनलेल्या सूर्यामुळे पदार्थांचे दर्शन होते व परिमाण कळते तसे विद्यायुक्त संताने सुख देणारी असतात त्यासाठी विषयासक्ती व अभिमान यामुळे विद्या व आयुष्य यांचा नाश करू नका.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top