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  • यजुर्वेद - अध्याय 13/ मन्त्र 6
    ऋषिः - हिरण्यगर्भ ऋषिः देवता - ईश्वरो देवता छन्दः - भुरिगुष्णिक् स्वरः - ऋषभः
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    नमो॑ऽस्तु स॒र्पेभ्यो॒ ये के च॑ पृथि॒वीमनु॑। येऽ अ॒न्तरि॑क्षे॒ ये दि॒वि तेभ्यः॑ स॒र्पेभ्यो॒ नमः॑॥६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नमः॑। अ॒स्तु॒। स॒र्पेभ्यः॑। ये। के। च॒। पृ॒थि॒वीम्। अनु॑। ये। अ॒न्तरि॑क्षे। ये। दि॒वि। तेभ्यः॑। स॒र्पेभ्यः॑। नमः॑ ॥६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नमो स्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथिवीमनु । येऽअन्तरिक्षे ये दिवि तेभ्यः सर्पेभ्यो नमः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    नमः। अस्तु। सर्पेभ्यः। ये। के। च। पृथिवीम्। अनु। ये। अन्तरिक्षे। ये। दिवि। तेभ्यः। सर्पेभ्यः। नमः॥६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 13; मन्त्र » 6
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    भावार्थ - हे माणसांनो ! जितके दृश्य व अदृश्य गोल आकाश मार्गात आपापल्या कक्षेत नियमाने फिरत असतात त्या सर्व गोलांतील प्राण्यांसाठी ईश्वराने अन्न निर्माण केलेले आहे व त्यावर सर्वांचे जीवन अवलंबून आहे. हे तुम्ही जाणा.

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