Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 82
    ऋषिः - शङ्ख ऋषिः देवता - अश्विनौ देवते छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    5

    तद॒श्विना॑ भि॒षजा॑ रु॒द्रव॑र्तनी॒ सर॑स्वती वयति॒ पेशो॒ऽअन्त॑रम्। अस्थि॑ म॒ज्जानं॒ मास॑रैः कारोत॒रेण॒ दध॑तो॒ गवां॑ त्व॒चि॥८२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तत्। अ॒श्विना॑। भि॒षजा॑। रु॒द्रव॑र्त्तनी॒ इति॑ रु॒द्रऽव॑र्त्तनी। सर॑स्वती। व॒य॒ति॒। पेशः॑। अन्त॑रम्। अस्थि॑। म॒ज्जान॑म्। मास॑रैः। का॒रो॒त॒रेण॑। दध॑तः। गवा॑म्। त्व॒चि ॥८२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तदश्विना भिषजा रुद्रवर्तनी सरस्वती वयति पेशोऽअन्तरम् । अस्थिमज्जानम्मासरैः कारोतरेण दधतो गवान्त्वचि ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    तत्। अश्विना। भिषजा। रुद्रवर्त्तनी इति रुद्रऽवर्त्तनी। सरस्वती। वयति। पेशः। अन्तरम्। अस्थि। मज्जानम्। मासरैः। कारोतरेण। दधतः। गवाम्। त्वचि॥८२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 19; मन्त्र » 82
    Acknowledgment

    भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे वैद्यकशास्र जाणणारे पती शरीर निरोगी करून स्रियांना सदैव सुखी करतात, तसेच विदुषी स्रियांनीही आपल्या पतींना रोगरहित करावे.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top