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  • यजुर्वेद - अध्याय 30/ मन्त्र 10
    ऋषिः - नारायण ऋषिः देवता - विद्वान् देवता छन्दः - भुरिगत्यष्टिः स्वरः - गान्धारः
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    उ॒त्सा॒देभ्यः॑ कु॒ब्जं प्र॒मुदे॑ वाम॒नं द्वा॒र्भ्यः स्रा॒म स्वप्ना॑या॒न्धमध॑र्माय बधि॒रं प॒वित्रा॑य भि॒षजं॑ प्र॒ज्ञाना॑य नक्षत्रद॒र्शमा॑शि॒क्षायै॑ प्र॒श्निन॑मुपशि॒क्षाया॑ऽअभिप्र॒श्निनं॑ म॒र्यादा॑यै प्रश्नविवा॒कम्॥१०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒त्सा॒देभ्य॒ इत्यु॑त्ऽसा॒देभ्यः॑। कु॒ब्जम्। प्र॒मुद॒ इति॑ प्र॒ऽमुदे॑। वा॒म॒नम्। द्वा॒र्भ्य इति॑ द्वाः॒ऽभ्यः। स्रा॒मम्। स्वप्ना॑य। अ॒न्धम्। अध॑र्माय। ब॒धि॒रम्। प॒वित्रा॑य। भि॒षज॑म्। प्र॒ज्ञाना॒येति॑ प्र॒ऽज्ञाना॑य। न॒क्ष॒त्र॒द॒र्शमिति॑ नक्षत्रऽद॒र्शम्। आ॒शि॒क्षाया॒ इत्या॑ऽशि॒क्षायै॑। प्र॒श्निन॑म्। उ॒प॒शि॒क्षाया॒ इत्यु॑पऽशि॒क्षायै॑। अ॒भि॒प्र॒श्निन॒मित्य॑भिऽप्रश्निन॑म्। म॒र्यादा॑यै। प्र॒श्न॒वि॒वा॒कमिति॑ प्रश्नऽविवा॒कम् ॥१० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उत्सादेभ्यः कुब्जम्प्रमुदे वामनन्द्वार्भ्यः स्रामँ स्वप्नायान्धमर्धमाय बधिरम्पवित्राय भिषजञ्प्रज्ञानाय नक्षत्रदर्शमाशिक्षायै प्रश्निनमुपशिक्षायाऽअभिप्रश्निनम्मर्यादायै प्रश्नविवाकम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    उत्सादेभ्य इत्युत्ऽसादेभ्यः। कुब्जम्। प्रमुद इति प्रऽमुदे। वामनम्। द्वार्भ्य इति द्वाःऽभ्यः। स्रामम्। स्वप्नाय। अन्धम्। अधर्माय। बधिरम्। पवित्राय। भिषजम्। प्रज्ञानायेति प्रऽज्ञानाय। नक्षत्रदर्शमिति नक्षत्रऽदर्शम्। आशिक्षाया इत्याऽशिक्षायै। प्रश्निनम्। उपशिक्षाया इत्युपऽशिक्षायै। अभिप्रश्निनमित्यभिऽप्रश्निनम्। मर्यादायै। प्रश्नविवाकमिति प्रश्नऽविवाकम्॥१०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 30; मन्त्र » 10
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ–হে পরমেশ্বর বা রাজন! আপনি (উৎসাদেভ্যঃ) নাশ করিতে প্রবৃত্ত (কুব্জম্) কুব্জকে (প্রমুদে) প্রবল কামাদির আনন্দের জন্য (বামনম্) লঘু মনুষ্যকে (দ্বাভ্যৌঃ) আচ্ছাদন হেতু (স্রামম্) যাহার নেত্র হইতে নিরন্তর জল বাহির হয় তাহাকে (স্বপ্নায়) শয়নের জন্য (অন্ধম্) অন্ধকে এবং (অধর্মায়) ধর্মাচরণ হইতে রহিত হইবার জন্য (বধিরম্) বধির ব্যক্তিকে পৃথক করুন এবং (পবিত্রায়) রোগের নিবৃত্তি হেতু (ভিষজম্) বৈদ্যকে (প্রজ্ঞানায়) উত্তম জ্ঞান বৃদ্ধি করিবার জন্য (নত্রক্ষদর্শনম্) নক্ষত্রগুলিকে দর্শন বা ইহা দ্বারা উত্তম বিষয়গুলিকে প্রদর্শনকারী গণিতজ্ঞ জ্যোতিষীকে (অশিক্ষায়ৈ) উত্তম প্রকার বিদ্যাগ্রহণের জন্য (প্রশ্নিনম্) প্রশংসিত প্রশ্নকর্ত্তাকে (উপশিক্ষায়ৈ) উপবেদাদি বিদ্যা গ্রহণের জন্য (অভিপ্রশ্নিনম্) সব দিক দিয়া বহু প্রশ্নকারীকে এবং (মর্যাদায়ৈ) ন্যায়-অন্যায়ের ব্যবস্থা হেতু (প্রশ্নবিবাকম্) প্রশ্নের বিবেচনা করিয়া উত্তর দানকারীকে উৎপন্ন করুন ॥ ১০ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ–হে রাজন্! যেমন ঈশ্বর পাপাচরণের ফল প্রদান করিবার ফলে খঞ্জ, বধির, কুব্জ, বামন, অন্ধ ইত্যাদি মনুষ্যাদি করেন এবং বৈদ্য, জ্যোতিষী, অধ্যাপক, পরীক্ষক তথা প্রশ্নোত্তরাদির বিবেচকদের জন্য শ্রেষ্ঠ কর্ম্মের ফল দেওয়ায় পবিত্রতা, বুদ্ধি, বিদ্যার গ্রহণ, পঠন, পরীক্ষা নেওয়া এবং প্রশ্নোত্তর করার সামর্থ্য প্রদান করে । সেইরূপ আপনিও যে যে অঙ্গ দ্বারা মনুষ্যগণ বিরুদ্ধ কর্ম্ম করে সেই সেই অঙ্গের উপর দন্ড মারিতে এবং বৈদ্যাদির প্রতিষ্ঠা করিতে রাজধর্মের নিরন্তর উন্নতি করুন ॥ ১০ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - উ॒ৎসা॒দেভ্যঃ॑ কু॒ব্জং প্র॒মুদে॑ বাম॒নং দ্বা॒র্ভ্যঃ স্রা॒মᳬं স্বপ্না॑য়া॒ন্ধমধ॑র্মায় বধি॒রং প॒বিত্রা॑য় ভি॒ষজং॑ প্র॒জ্ঞানা॑য় নক্ষত্রদ॒র্শমা॑শি॒ক্ষায়ৈ॑ প্র॒শ্নিন॑মুপশি॒ক্ষায়া॑ऽ অভিপ্র॒শ্নিনং॑ ম॒র্য়াদা॑য়ৈ প্রশ্নবিবা॒কম্ ॥ ১০ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - উৎসাদেভ্য ইত্যস্য নারায়ণ ঋষিঃ । বিদ্বান্ দেবতা । ভুরিগত্যষ্টিশ্ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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