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  • यजुर्वेद - अध्याय 30/ मन्त्र 18
    ऋषिः - नारायण ऋषिः देवता - राजेश्वरौ देवते छन्दः - निचृत्प्रकृतिः स्वरः - धैवतः
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    अ॒क्ष॒रा॒जाय॑ कित॒वं कृ॒ताया॑दिनवद॒र्शं त्रेता॑यै क॒ल्पिनं॑ द्वा॒परा॑याधिक॒ल्पिन॑मास्क॒न्दाय॑ सभास्था॒णुं मृ॒त्यवे॑ गोव्य॒च्छमन्त॑काय गोघा॒तं क्षु॒धे यो गां वि॑कृ॒न्तन्तं॒ भिक्ष॑माणऽउप॒ तिष्ठ॑ति दुष्कृ॒ताय॒ चर॑काचार्यं पा॒प्मने॑ सैल॒गम्॥१८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒क्ष॒रा॒जायेत्य॑क्षऽरा॒जाय॑। कि॒त॒वम्। कृ॒ताय॑। आ॒दि॒न॒व॒द॒र्शमित्या॑दिनवऽद॒र्शम्। त्रैता॑यै। क॒ल्पिन॑म्। द्वा॒परा॑य। अ॒धि॒क॒ल्पिन॒मित्य॑धिऽक॒ल्पिन॑म्। आ॒स्क॒न्दायेत्या॑ऽस्क॒न्दाय॑। स॒भा॒स्था॒णुमिति॑ सभाऽस्था॒णुम्। मृ॒त्यवे॑। गो॒व्य॒च्छमिति॑ गोऽव्य॒च्छम्। अन्त॑काय। गो॒घा॒तमिति॑ गोऽघा॒तम्। क्षु॒धे। यः। गाम्। वि॒कृ॒न्तन्त॒मिति॑ विऽकृ॒न्तन्त॑म्। भिक्ष॑माणः। उ॒प॒तिष्ठ॒तीत्यु॑प॒ऽतिष्ठ॑ति। दु॒ष्कृ॒ताय॑। दुः॒कृ॒तायेति॑ दुःऽकृ॒ताय॑। चर॑काचार्य्य॒मिति॒ चर॑कऽआचार्य्यम्। पा॒प्मने॑। सै॒ल॒गम् ॥१८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अक्षराजाय कितवङ्कृतायादिनवदर्शन्त्रेतायै कल्पिनन्द्वापरायाधिकल्पिनमास्कन्दाय सभास्थाणुम्मृत्यवे गोव्यच्छमन्तकाय गोघातङ्क्षुधे यो गाँविकृन्तन्तम्भिक्षमाणऽउपतिष्ठति दुष्कृताय चरकाचार्यं पाप्मने सैलगम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अक्षराजायेत्यक्षऽराजाय। कितवम्। कृताय। आदिनवदर्शमित्यादिनवऽदर्शम्। त्रैतायै। कल्पिनम्। द्वापराय। अधिकपिल्पनमित्यधिऽकल्पिनम्। आस्कन्दायेत्याऽस्कन्दाय। सभास्थाणुमिति सभाऽस्थाणुम्। मृत्यवे। गोव्यच्छमिति गोऽव्यच्छम्। अन्तकाय। गोघातमिति गोऽघातम्। क्षुधे। यः। गाम्। विकृन्तन्तमिति विऽकृन्तन्तम्। भिक्षमाणः। उपतिष्ठतीत्युपऽतिष्ठति। दुष्कृताय। दुःकृतायेति दुःऽकृताय। चरकाचार्य्यमिति चरकऽआचार्य्यम्। पाप्मने। सैलगम्॥१८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 30; मन्त्र » 18
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ–হে জগদীশ্বর বা রাজন্! আপনি (অক্ষরাজায়) পাশা দিয়া ক্রীড়াকারীদের প্রধানের হিতকারী (কিতবম্) দ্যুতকারীদেরকে (মৃত্যবে) মারিবার জন্য (গোব্যচ্ছম্) গাভিদের মধ্যে মন্দ প্রযত্নকারীকে (অন্তকায়) নাশ হেতু (গোঘাতম্) গাভিদের হত্যাকারীকে (ক্ষুধে) ক্ষুধার জন্য (য়ঃ) যে (গাম্) গাভিকে বধ করে তাহাকে (বিকৃন্তন্তম্) কর্তনকারীকে যে (ভিক্ষমাণঃ) ভিক্ষা চাহিয়া (উপতিষ্ঠতি) উপস্থিত হয় । (দুষ্কৃতায়) দৃষ্ট আচরণের জন্য প্রবৃত্ত সেই (চরকাচার্য়্যম্) ভক্ষণকারীদের গুরুকে (পাপ্মনে) পাপীর হিতকারী (সৈলগম্) দুষ্টের পুত্রকে দূর করুন । (কৃতায়) কৃতের জন্য (আদিনবদর্শম্) আদিতে নবীনদিগকে দর্শনকারীকে (ত্রেতায়ৈ) তিন হওয়ার অর্থ কল্পিনম্) প্রশংসিত সামর্থ্য যুক্তকে (দ্বাপরায়) দাও যাহার এইদিকে সম্পর্ক থাকে তাহার জন্য (অধিকল্পিনম্) অধিকতর সামর্থ্যযুক্তকে এবং (আস্কন্দায়) উত্তম প্রকার শোষণার্থ (সভাস্থাণুম্) সভায় স্থির থাকে যে তাহাকে প্রকট বা উৎপন্ন করুন ॥ ১৮ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ–যে সব মনুষ্য জ্যোতিষী আদি সত্যচারীদিগের সৎকার করে এবং দুষ্টাচারী গোহত্যাকারী আদিকে তাড়না করেন তাহারা রাজ্য করিতে সক্ষম হয় ॥ ১৮ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - অ॒ক্ষ॒রা॒জায়॑ কিত॒বং কৃ॒তায়া॑দিনবদ॒র্শং ত্রেতা॑য়ৈ ক॒ল্পিনং॑ দ্বা॒পরা॑য়াধিক॒ল্পিন॑মাস্ক॒ন্দায়॑ সভাস্থা॒ণুং মৃ॒ত্যবে॑ গোব্য॒চ্ছমন্ত॑কায় গোঘা॒তং ক্ষু॒ধে য়ো গাং বি॑কৃ॒ন্তন্তং॒ ভিক্ষ॑মাণऽউপ॒তিষ্ঠ॑তি দুষ্কৃ॒তায়॒ চর॑কাচার্য়ং পা॒প্মনে॑ সৈল॒গম্ ॥ ১৮ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - অক্ষরাজায়েত্যস্য নারায়ণ ঋষিঃ । রাজেশ্বরৌ দেবতে । নিচৃৎপ্রকৃতিশ্ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

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