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  • यजुर्वेद - अध्याय 27/ मन्त्र 5
    ऋषिः - अग्निर्ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - स्वराट् पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    क्ष॒त्रेणा॑ग्ने॒ स्वायुः सꣳर॑भस्व मि॒त्रेणा॑ग्ने मित्र॒धेये॑ यतस्व।स॒जा॒तानां॑ मध्यम॒स्थाऽ ए॑धि॒ राज्ञा॑मग्ने विह॒व्यो दीदिही॒ह॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क्ष॒त्रेण॑। अ॒ग्ने॒। स्वायु॒रिति॑ सु॒ऽआयुः॑। सम्। र॒भ॒स्व॒। मि॒त्रेण॑। अ॒ग्ने॒। मि॒त्र॒धेय॒ इति॑ मित्र॒ऽधेये॑। य॒त॒स्व॒ ॥ स॒जा॒ताना॒मिति॑ सऽजा॒ताना॑म्। म॒ध्य॒म॒स्था इति॑ मध्यम॒ऽस्थाः। ए॒धि॒। राज्ञा॑म्। अ॒ग्ने॒। वि॒ह॒व्य᳖ इति॑ विऽह॒व्यः᳖। दी॒दि॒हि॒। इ॒ह ॥५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    क्षत्रेणाग्ने स्वायुः सँ रभस्व मित्रेणाग्ने मित्रधेये यतस्व । सजातानाम्मध्यमस्थाऽएधि राज्ञामग्ने विहव्यो दीदिहीह ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    क्षत्रेण। अग्ने। स्वायुरिति सुऽआयुः। सम्। रभस्व। मित्रेण। अग्ने। मित्रधेय इति मित्रऽधेये। यतस्व॥ सजातानामिति सऽजातानाम्। मध्यमस्था इति मध्यमऽस्थाः। एधि। राज्ञाम्। अग्ने। विहव्य इति विऽहव्यः। दीदिहि। इह॥५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 27; मन्त्र » 5
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    पदार्थ -
    १. हे (अग्ने) = अग्नि की भाँति शत्रुओं को भस्मसात् करनेवाले जीव ! (क्षत्रेण) = बल के साथ (स्व आयुः) = अपने जीवन को (संरभस्व) = समारब्ध कर, अर्थात् अपने जीवन में सबल कार्यों का करनेवाला बन। २. हे (अग्ने) = प्रगतिशील जीव ! तू (मित्रेण) = [मित्र = सूर्य] सूर्योदय के साथ ही, अर्थात् दिन के प्रारम्भ से ही (मित्रधेये यतस्व) = इस प्रकार यत्नशील हो कि तू अपने मित्रों का धारण करनेवाला बने ['यथा मित्राणि धार्यन्ते तथा यत्नं कुरु'- उ० ] । अपने लिए तो कौवा भी जीता है, तू केवल अपने लिए जीनेवाला न बन । ३. तू (सजातानाम्) = समान जन्मवालों का, हम उम्रवालों का, (मध्यमस्था एधि) = मध्यस्थ हो, अर्थात् यदि कभी किन्ही दो में संघर्ष हो जाए तो वे दानों तुझे मध्यस्थ बनाने के लिए सहर्ष उद्यत हों। यह होगा तभी जब तेरा जीवन यज्ञमय होगा । ४. हे अग्ने ! पथप्रदर्शक! तेरा जीवन ऐसा सुन्दर हो कि तू (राज्ञाम्) = राजाओं का भी (विहव्यः) = विशिष्टरूप से पुकारने योग्य बने । ५. हे अग्ने ! इस प्रकार के जीवनवाला बनकर तू (इह) = यहाँ मानव-जीवन में (दीदिहि) = खूब ही चमकनेवाला हो ।

    भावार्थ - भावार्थ- हमारे कार्य शक्तिशाली हों, हमारा सारा दिन ऐसे कार्यों में बीते जो मित्रों का धारण करनेवाले हों, उनके परस्पर के झगड़ों को हम निपटानेवाले बनें। राजाओं के भी पुकारने योग्य हों तथा देदीप्यमान जीवनवाले बनें।

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