Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 32/ मन्त्र 14
    ऋषिः - मेधाकाम ऋषिः देवता - परमात्मा देवता छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    0

    यां मे॒धां दे॑वग॒णाः पि॒तर॑श्चो॒पास॑ते। तया॒ माम॒द्य मे॒धयाऽग्ने॑ मे॒धावि॑नं कुरु॒ स्वाहा॑॥१४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    याम्। मे॒धाम्। दे॒व॒ग॒णा इति॑ देवऽग॒णाः। पि॒तरः॑। च॒। उ॒पास॑ते॒ इत्यु॑प॒ऽआस॑ते ॥ तया॑। माम्। अ॒द्य। मे॒धया॑। अग्ने॑ मे॒धावि॑नम्। कु॒रु॒। स्वाहा॑ ॥१४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    याम्मेधान्देवगणाः पितरश्चोपासते । तया मामद्य मेधयाग्ने मेधाविनङ्कुरु स्वाहा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    याम्। मेधाम्। देवगणा इति देवऽगणाः। पितरः। च। उपासते इत्युपऽआसते॥ तया। माम्। अद्य। मेधया। अग्ने मेधाविनम्। कुरु। स्वाहा॥१४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 32; मन्त्र » 14
    Acknowledgment

    पदार्थ -
    १. (याम्) = जिस (मेधाम्) = बुद्धि की (देवगणाः) = देवगण (पितरः च) = और रक्षक लोग (उपासते) = उपासना करते हैं (तया मेधया) = उस मेधा से (माम्) = मुझे (अद्य) = आज (अग्ने) = हे आगे ले-चलनेवाले प्रभो ! (मेधाविनम्) = मेधावाला (कुरु) = कीजिए। (स्वाहा) = इसके लिए मैं स्वार्थ का त्याग करता हूँ। २. प्रस्तुत मन्त्र में प्रभु को 'अग्ने' नाम से सम्बोधित करके संकेत किया है कि सारी उन्नति बुद्धि पर ही निर्भर है। यह बुद्धि 'मेधा' है, मेरा धारण करनेवाली है। 'बुद्धिनाशात् प्रणश्यति' - बुद्धिनाश से मनुष्य नष्ट हो जाता है। देवता जिसका नाश चाहते हैं, उसकी बुद्धि हर लेते हैं। ३. मेधा वही ठीक है जिसकी देवगण उपासना करते हैं न कि दानव । बुद्धि का गलत प्रयोग मनुष्य को दानव भी बना देता है। क्या अणुबम्बों को बनाकर मनुष्य दानव नहीं बन गया ? इसी अणुशक्ति का प्रयोग यन्त्रों के सञ्चालन में होकर मानवहित की साधना भी हो सकती है, अतः मुझे वही मेधा चाहिए जिसकी देव उपासना करते हैं । ४. बुद्धि वही ठीक है जो मुझे रक्षक बनाती है। मैं बुद्धि का प्रयोग औरों के ध्वंस में न करूँ। निज जीवन में जो बुद्धि मुझे 'देव' बनाती है, वही बुद्धि सामाजिक जीवन में मुझे 'पितर' बनाती है। ५. इस बुद्धि को मैं आज ही प्राप्त कर सकूँ। इस बुद्धि को जितना शीघ्र प्राप्त कर सकें उतना ही ठीक। इसमें जितनी देर होती है उतना ही हानिकारक है।

    भावार्थ - भावार्थ- प्रभु मुझे बुद्धि दें, जिससे मैं देव व 'पितर' रक्षक बन पाऊँ। सदा उन्नति के मार्ग पर आगे बढ़ता जाऊँ।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top