यजुर्वेद - अध्याय 32/ मन्त्र 14
ऋषिः - मेधाकाम ऋषिः
देवता - परमात्मा देवता
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
279
यां मे॒धां दे॑वग॒णाः पि॒तर॑श्चो॒पास॑ते। तया॒ माम॒द्य मे॒धयाऽग्ने॑ मे॒धावि॑नं कुरु॒ स्वाहा॑॥१४॥
स्वर सहित पद पाठयाम्। मे॒धाम्। दे॒व॒ग॒णा इति॑ देवऽग॒णाः। पि॒तरः॑। च॒। उ॒पास॑ते॒ इत्यु॑प॒ऽआस॑ते ॥ तया॑। माम्। अ॒द्य। मे॒धया॑। अग्ने॑ मे॒धावि॑नम्। कु॒रु॒। स्वाहा॑ ॥१४ ॥
स्वर रहित मन्त्र
याम्मेधान्देवगणाः पितरश्चोपासते । तया मामद्य मेधयाग्ने मेधाविनङ्कुरु स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठ
याम्। मेधाम्। देवगणा इति देवऽगणाः। पितरः। च। उपासते इत्युपऽआसते॥ तया। माम्। अद्य। मेधया। अग्ने मेधाविनम्। कुरु। स्वाहा॥१४॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
मनुष्यैरीश्वराद् बुद्धिर्याचनीयेत्याह॥
अन्वयः
हे अग्ने विद्वन्नध्यापक! जगदीश्वर वा! देवगणाः पितरश्च यां मेधामुपासते तया मेधया मामद्य स्वाहा मेधाविनं कुरु॥१४॥
पदार्थः
(याम्) (मेधाम्) प्रज्ञां धनं वा। मेधेति धनना॰॥ (निघं॰२।१०) (देवगणाः) देवानां विदुषां समूहाः (पितरः) पालयितारो विज्ञानिनः (च) (उपासते) प्राप्य सेवन्ते (तया) (माम्) (अद्य) (मेधया) (अग्ने) स्वप्रकाशत्वेन विद्याविज्ञापक! (मेधाविनम्) प्रशस्ता मेधा विद्यते यस्य तम् (कुरु) (स्वाहा) सत्यया वाचा॥१४॥
भावार्थः
मनुष्याः परमेश्वरमुपास्याप्तं विद्वासं संसेव्य शुद्धं विज्ञानं धर्मजं धनञ्च प्राप्तुमिच्छेयुरन्यांश्चैवं प्रापयेयुः॥१४॥
हिन्दी (5)
विषय
मनुष्यों को ईश्वर से बुद्धि की याचना करनी चाहिये, इस विषय को कहते हैं॥
पदार्थ
हे (अग्ने) स्वयं प्रकाशरूप होने से विद्या के जतानेहारे ईश्वर! वा अध्यापक विद्वन्! (देवगणाः) अनेक विद्वान् (च) और (पितरः) रक्षा करनेहारे ज्ञानी लोग (याम्) जिस (मेधाम्) बुद्धि वा धन को (उपासते) प्राप्त होके सेवन करते हैं, (तया) उस (मेधया) बुद्धि वा धन से (माम्) मुझको (अद्य) आज (स्वाहा) सत्य वाणी से (मेधाविनम्) प्रशंसित बुद्धि वा धनवाला (कुरु) कीजिये॥१४॥
भावार्थ
मनुष्य लोग परमेश्वर की उपासना और आप्त विद्वान् की सम्यक् सेवा करके शुद्ध विज्ञान और धर्म से हुए धन को प्राप्त होने की इच्छा करें और दूसरों को भी ऐसे ही प्राप्त करावें॥१४॥
विषय
स्तुतिविषयः
व्याखान
हे सर्वज्ञाग्ने परमात्मन् (यां मेधाम्) जिस विज्ञानवती, यथार्थ धारणावाली बुद्धि को (देवगणाः) देवसमूह [विद्वानों के वृन्द] (उपासते) धारण करते हैं तथा यथार्थ पदार्थविज्ञानवाले (पितरः) पितर जिस बुद्धि के उपाश्रित होते हैं, उस बुद्धि के साथ (अद्य) इसी समय कृपा से (माम् मेधाविनम् कुरु) मुझको मेधावी कर । (स्वाहा) इसको आप अनुग्रह और प्रीति से स्वीकार कीजिए, जिससे मेरी सब जड़ता दूर हो जाए ॥ ५३ ॥
विषय
उससे मेधा बुद्धि की प्रार्थना ।
भावार्थ
( याम् ) जिस ( मेधाम् ) आत्ममान को धारण करने वाली परम बुद्धि को (देवगणाः) देव, विद्वान् गण ( पितरः ) पालक जन, पूर्व के विद्वान् (च) भी (उपासते) उपासना करते हैं (तया मेधया) उस परम प्रज्ञा से (अग्ने) हे ज्ञानस्वरूप परमेश्वर ! या गुरो ! (माम्) मुझको (स्वाहा) उत्तम उपदेश वाणी और योगाभ्यास द्वारा (मेधाविनं कुरु), मेधावान्, प्रज्ञावान् करो ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
परमात्मा । निचृदनुष्टुप् । गान्धारः ॥
विषय
देवगण व पितरों से उपासित बुद्धि-मेधावी
पदार्थ
१. (याम्) = जिस (मेधाम्) = बुद्धि की (देवगणाः) = देवगण (पितरः च) = और रक्षक लोग (उपासते) = उपासना करते हैं (तया मेधया) = उस मेधा से (माम्) = मुझे (अद्य) = आज (अग्ने) = हे आगे ले-चलनेवाले प्रभो ! (मेधाविनम्) = मेधावाला (कुरु) = कीजिए। (स्वाहा) = इसके लिए मैं स्वार्थ का त्याग करता हूँ। २. प्रस्तुत मन्त्र में प्रभु को 'अग्ने' नाम से सम्बोधित करके संकेत किया है कि सारी उन्नति बुद्धि पर ही निर्भर है। यह बुद्धि 'मेधा' है, मेरा धारण करनेवाली है। 'बुद्धिनाशात् प्रणश्यति' - बुद्धिनाश से मनुष्य नष्ट हो जाता है। देवता जिसका नाश चाहते हैं, उसकी बुद्धि हर लेते हैं। ३. मेधा वही ठीक है जिसकी देवगण उपासना करते हैं न कि दानव । बुद्धि का गलत प्रयोग मनुष्य को दानव भी बना देता है। क्या अणुबम्बों को बनाकर मनुष्य दानव नहीं बन गया ? इसी अणुशक्ति का प्रयोग यन्त्रों के सञ्चालन में होकर मानवहित की साधना भी हो सकती है, अतः मुझे वही मेधा चाहिए जिसकी देव उपासना करते हैं । ४. बुद्धि वही ठीक है जो मुझे रक्षक बनाती है। मैं बुद्धि का प्रयोग औरों के ध्वंस में न करूँ। निज जीवन में जो बुद्धि मुझे 'देव' बनाती है, वही बुद्धि सामाजिक जीवन में मुझे 'पितर' बनाती है। ५. इस बुद्धि को मैं आज ही प्राप्त कर सकूँ। इस बुद्धि को जितना शीघ्र प्राप्त कर सकें उतना ही ठीक। इसमें जितनी देर होती है उतना ही हानिकारक है।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु मुझे बुद्धि दें, जिससे मैं देव व 'पितर' रक्षक बन पाऊँ। सदा उन्नति के मार्ग पर आगे बढ़ता जाऊँ।
मन्त्रार्थ
(अग्ने) हे ज्ञानप्रकाश स्वरूप परमात्मन्! (देवगणाः पितर:च) विद्वान् ऋषि मुनि गण और पूर्वज पालक जन (यां मेधाम्-उपासते) जिस धारणावती बुद्धि को सेवन करते आए हैं (तया मेधया) उस बुद्धि से (अद्य) आज इसी जीवन में (मां मेधाविनं कुरु स्वाहा) मुझे बुद्धिमान् कर यह कथन यह आशा सत्य हो पूरी हो॥१४॥
विशेष
ऋषिः-स्वयम्भु ब्रह्म १-१२ । मेधाकामः १३-१५ । श्रीकामः १६ ।। देवताः-परमात्मा १-२, ६-८ १०, १२, १४। हिरण्यगर्भः परमात्मा ३ । आत्मा ४ । परमेश्वरः ५ । विद्वान् । इन्द्रः १३ । परमेश्वर विद्वांसौ १५ । विद्वद्राजानौ १६ ॥
मराठी (3)
भावार्थ
माणसांनी परमेश्वराची उपासना व आप्त विद्वान लोकांची सेवा करून शुद्ध विज्ञान व धर्माने धन प्राप्त करण्याची इच्छा बाळगावी व इतरांना तसे प्राप्त करण्यास प्रवृत्त करावे.
विषय
मनुष्यासाठी ईश्वराकडे बुद्धी देण्याविषयी प्रार्थना करावी, याविषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे (अग्ने) स्वयंप्रकाशस्वरूप ईश्वर अथवा हे विदय अध्यापन करणारे अध्यापक महोदय, (देवगणाः) अनेक विद्वान (च) आणि (पितरः) रक्षक ज्ञानीजन (याम्) जे (मेधाम्) बुद्धी वा धन (उपासते) प्राप्त करून त्याचे सेवन करतात (त्यापासून लाभ घेतात) (तया) त्या (मेधया) बुद्धीने वा धनाने (माम्) मला (उपासकाला वा सामान्य जिज्ञासू मनुष्याला) (अद्य) आज (स्वाहा) सत्याच्या मार्गाने (मेधाविनम्) प्रशंसनीय वा निर्दोष बुद्धी आणि धन अर्जित करणारा (कुरू) करा ॥14॥
भावार्थ
भावार्थ - मनुष्यांनी परमेश्वराची उपासना करून आणि आप्त विद्वानांची सम्यकप्रमाणे सेवा करून शुद्ध व धर्ममय नीती मार्गाने धन अर्जित करण्याची इच्छा करावी तसेच इतर लोकांनाही तसे सत्य मार्गाने धनार्जन करण्यास सांगावे ॥14॥
विषय
स्तुती
व्याखान
हे सर्वज्ञ अग्नीरूप परमेश्वरा ! (देवगणाः) विद्वान लोक (उपासते) ज्या विज्ञान यथार्थ धारणावती बुद्धीला धारण करतात व (पितरः) यथार्थ पदार्थ विद्या जागा वैज्ञानिक (उपासते) ज्या बुद्धीचा आश्रय घेतात त्या माझ्यास बुद्धीला मेधावी बनविण्यात कृपाकर. (स्वाहा) कृपा करून हा अनुग्रह कर. ज्यामुळे माझे शिथिलत्त्व [जडत्व] दूर होईल.॥५३॥
इंग्लिश (4)
Meaning
That wisdom which the sages and scholars long for ; with that wisdom, O God, with Thy truthful speech, make me wise today.
Meaning
Agni, lord of light and knowledge, I pray, enlighten me here and now with that discriminative intelligence which the noblest people of piety and senior guardians of humanity value and pray for. This is the voice of the heart in truth of word and deed.
Purport
O Omniscient Lord ! O Supreme Soul ! Kindly make me intelligent soon, with that wisdom-intelligence; which is cherished, wanted and prayed for by learned scholars and protectors of human society equipped with the knowledge of physical sciences. It is my heart-felt desire. By Your Love and Mercy do accept it, so that all the dullness of my mind should vanish.
Translation
O adorable Lord, make me wise today by bestowing upon me that wisdom, which the learned and elders so keenly desire. Svaha. (1)
Notes
Pitaraḥ, fathers, manes; elders. Devāḥ, gods; deities; learned people. Medha, wisdom.
बंगाली (1)
विषय
মনুষ্যৈরীশ্বরাদ্ বুদ্ধির্য়াচনীয়েত্যাহ ॥
মনুষ্যদিগকে ঈশ্বরের নিকট বুদ্ধির যাচনা করা প্রয়োজন, এই বিষয়কে বলা হইতেছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ–হে (অগ্নে) স্বয়ং প্রকাশরূপ হওয়ায় বিদ্যাজ্ঞাপক ঈশ্বর বা অধ্যাপক বিদ্বান্! (দেবগণঃ) বহু বিদ্বান্ (চ) এবং (পিতরঃ) রক্ষক জ্ঞানীগণ (য়াম্) যে (মেধাম্) বুদ্ধি বা ধনকে (উপাসতে) প্রাপ্ত হইয়া সেবন করেন (তথা) সেই (মেধয়া) বুদ্ধি বা ধন দ্বারা (মাম্) আমাকে (অদ্য) আজ (স্বাহা) সত্যবাণী দ্বারা (মেধাবিনম্) প্রশংসিত বুদ্ধি বা ধনসম্পন্ন (কুরু) করুন ॥ ১৪ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–মনুষ্যগণ পরমেশ্বরের উপাসনা এবং আপ্ত বিদ্বানের সম্যক্ সেবা করিয়া শুদ্ধ বিজ্ঞান ও ধর্ম দ্বারা হওয়া ধনকে প্রাপ্ত হওয়ার ইচ্ছা করিবে এবং অন্যান্যকেও এইরূপ প্রাপ্ত করাইবে ॥ ১৪ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
য়াং মে॒ধাং দে॑বগ॒ণাঃ পি॒তর॑শ্চো॒পাস॑তে ।
তয়া॒ মাম॒দ্য মে॒ধয়াऽগ্নে॑ মে॒ধাবি॑নং কুরু॒ স্বাহা॑ ॥ ১৪ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
য়ামিত্যস্য মেধাকাম ঋষিঃ । পরমাত্মা দেবতা । নিচৃদনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
গান্ধারঃ স্বরঃ ॥
नेपाली (1)
विषय
स्तुतिविषयः
व्याखान
हे सर्वज्ञ अग्ने ! परमात्मन् ! यां मेधाम्= जुन विज्ञानवती र यथार्थ धारणावती बुद्धि लाई देवगणा:- देवसमूह अर्थात् विद्वान् हरु को समूह ले उपासते = धारण गर्द छन्, तथा यथार्थ पदार्थविज्ञानवान् पितरः = पितृ हरु जुन बुद्धि को उपाश्रित हुन्छन्, तेसै बुद्धि का साथ अद्य=आज यसै समय कृपागरी माम् मेधाविनं कुरु = मँलाई मेद्यावी बनाउनु होस्, स्वाहा= हजुरले एसलाई अनुग्रह र प्रीति ले स्वीस्कार गर्नु होस्, जसले मेरो सम्पूर्ण जडता निवारण होस् ॥ ५३॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal