यजुर्वेद - अध्याय 32/ मन्त्र 9
ऋषिः - स्वयम्भु ब्रह्म ऋषिः
देवता - विद्वान् देवता
छन्दः - निचृत त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
233
प्र तद्वो॑चेद॒मृतं॒ नु वि॒द्वान् ग॑न्ध॒र्वो धाम॒ विभृ॑तं॒ गृहा॒ सत्।त्रीणि॑ प॒दानि॒ निहि॑ता॒ गुहा॑स्य॒ यस्तानि॒ वेद॒ स पि॒तुः पि॒ताऽस॑त्॥९॥
स्वर सहित पद पाठप्र। तत्। वो॒चे॒त्। अ॒मृत॑म्। नु। वि॒द्वान्। ग॒न्ध॒र्वः। धाम॑। विभृ॑त॒मिति॒ विऽभृ॑तम्। गुहा॑। सत् ॥ त्रीणि॑। प॒दानि॑। निहि॒तेति॒ निऽहि॑ता। गुहा॑। अ॒स्य॒। यः। तानि॑। वेद॑। सः। पि॒तुः। पि॒ता। अ॒स॒त् ॥९ ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र तद्वोचेदमृतन्नु विद्वान्गन्धर्वो धाम विभृतङ्गुहा सत् । त्रीणि पदानि निहिता गुहास्य यस्तानि वेद स पितुः पितासत् ॥
स्वर रहित पद पाठ
प्र। तत्। वोचेत्। अमृतम्। नु। विद्वान्। गन्धर्वः। धाम। विभृतमिति विऽभृतम्। गुहा। सत्॥ त्रीणि। पदानि। निहितेति निऽहिता। गुहा। अस्य। यः। तानि। वेद। सः। पितुः। पिता। असत्॥९॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
हे मनुष्याः! यो गन्धर्वो विद्वान् गुहा विभृतममृतं धाम तत् सन्न प्रवोचेत् यान्यस्य गुहा निहिता पदानि त्रीणि सन्ति तानि च वेद स पितुः पिताऽसत्॥९॥
पदार्थः
(प्र) (तत्) चेतनं ब्रह्म (वोचेत्) गुणकर्मस्वभावत उपदिशेत् (अमृतम्) नाशरहितम् (नु) सद्यः (विद्वान्) पण्डितः (गन्धर्वः) यो गां वेदवाचं धरति सः (धाम) मुक्तिसुखस्य स्थानम् (बिभृतम्) विशेषेण धृतम् (गुहा) बुद्धौ (सत्) नित्यम् (त्रीणि) उत्पत्तिस्थितिप्रलयाः काला वा (पदानि) ज्ञातुमर्हाणि (निहिता) निहितानि (गुहा) बुद्धौ (अस्य) अविनाशिनः (यः) (तानि) (वेद) जानाति (सः) (पितुः) जनकस्येश्वरस्य वा (पिता) ज्ञानप्रदानेनास्तिकत्वेन वा रक्षकः (असत्) भवेत्॥९॥
भावार्थः
हे मनुष्याः! य ईश्वरस्य मुक्तिसाधकं बुद्धिस्थं स्वरूपमुपदिशेयुर्यथार्थतया पदार्थानां परमात्मनश्च गुणकर्मस्वभावान् विजानीयुस्ते वयोवृद्धानां पितॄणामपि पितरो भवितुं योग्याः सन्तीति विजानीत॥९॥
हिन्दी (5)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे मनुष्यो! (यः) जो (गन्धर्वः) वेदवाणी को धारण करनेवाला (विद्वान्) पण्डित (गुहा) बुद्धि में (बिभृतम्) विशेष धारण किये (अमृतम्) नाशरहित (धाम) मुक्ति के स्थान (तत्) उस (सत्) नित्य चेतन ब्रह्म का (नु) शीघ्र (प्र, वोचेत्) गुण-कर्म-स्वभावों के सहित उपदेश करे और जो (अस्य) इस अविनाशी ब्रह्म के (गुहा) ज्ञान में (निहिता) स्थित (पदानि) जानने योग्य (त्रीणि) तीन उत्पत्ति, स्थिति, प्रलय वा भूत, भविष्यत्, वर्त्तमान काल हैं, (तानि) उनको (वेद) जानता है, (सः) वह (पितुः) अपने पिता वा सर्वरक्षक ईश्वर का (पिता) ज्ञान देने वा आस्तिकत्व से रक्षक (असत्) होवे॥९॥
भावार्थ
हे मनुष्यो! जो विद्वान् लोग ईश्वर के मुक्तिसाधक बुद्धिस्थ स्वरूप का उपदेश करें, ठीक-ठीक पदार्थों के और ईश्वर के गुण, कर्म, स्वभाव को जानें वे अवस्था में बड़े पितादिकों के भी रक्षा के योग्य होते हैं, ऐसा जानो॥९॥
विषय
स्तुतिविषयः
व्याखान
हे वेदादिशास्त्र और विद्वानों के प्रतिपादन करने योग्य भगवन् ! जो (अमृतम्) अमृत [मरणादि दोषरहित] मुक्तों का (धाम) निवासस्थान, सर्वगत, सबका धारण और पोषण करनेवाला, सबकी बुद्धियों का साक्षी ब्रह्म है, उस आपका उपदेश तथा धारण जो विद्वान् जानता है, वह (गन्धर्वः) गन्धर्व कहाता है [गच्छतीति गं-ब्रह्म, तद्धरतीति स गन्धर्वः] सर्वगत ब्रह्म को जो धारण करनेवाला उसका नाम गन्धर्व है तथा (त्रीणि पदानि निहिता गुहा अस्य यः तानि वेद) परमात्मा के तीन पद हैं- जगत् की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय करने का सामर्थ्य - इनको तथा ईश्वर को जो स्वहृदय में जानता है, (सः, पितुः, पिता, असत्) वह पिता का भी पिता है, अर्थात् विद्वानों में भी विद्वान् है ॥ २४ ॥
विषय
उस परम प्रभु का ज्ञाता सबके पिता का पिता है ।
भावार्थ
( गन्धर्वः) गौ अर्थात् वेदवाणी को धारण करने वाला, वेदज्ञ (विद्वान् ) विद्वान्, आत्मज्ञानी पुरुष (तद्) उस (अमृतम् ) अमृत (गुहा) बुद्धि में ( विभृतम् ) विशेष रूप से विद्यमान ( धाम ) सबको धारण करने वाले, परम तेजोमय, सर्वाश्रय, परमेश्वर के स्वरूप का (प्रवोचेत् नु) हमें उपदेश करे । (अस्य) उस परमेश्वर के ( त्रीणि पदानि ) तीन पद, जानने योग्य तीन स्वरूप ( गुहा निहितानि) बुद्धि में स्थित हैं । (यः) जो (तानि) उनको (वेद) साक्षात् कर लेता है (सः) वह ( पितु: पिता) पिता से भी बड़ा, पिता का भी पिता, पालक (असत्) है । 'त्रीणि पदानि ' - त्रिपादस्यामृतं दिवि । त्रीणि पदा विचक्रमे । त्रिपाजस्यः । त्रिपस्त्यं ऋ० ८।३९।८॥त्र्यनीकः । ऋ० ३। ५६ । ३ ॥ त्रि- ऊधन् । त्रिप्रतिष्ठितः । अ० १०।२।३२॥ त्रिसधस्थः । ऋ० ५|४|८ ॥ त्रिदिवः त्रिनाक, त्र्यरुण, त्रिधातु, त्रिवृतः इत्यादि नाना त्रिक लेने योग्य हैं।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विद्वान् । निचत् त्रिष्टुप् । धैवतः ॥
विषय
'अमृत-धाम-सत्' : पिता का भी पिता
पदार्थ
१. (विद्वान्) = जो ज्ञानी है, जिसका आगम अत्यन्त सुन्दर है, जिसने गुरुओं से स्वाध्यायादि करके खूब मनन किया है। (गन्धर्वः) = जो (गाम्) = वाणी को धारण करनेवाला है, वाक्शक्ति का ईश है, जो किसी भी बात का प्रतिपादन बड़ी सुन्दरता से कर सकता है। वह विद्वान् गन्धर्व (नु) = अब (तत्) = उस ब्रह्म का (प्रवोचेत्) = प्रवचन करे। २. किस प्रभु का ? जो प्रभु [क] (अमृतम्) = अमृत हैं, प्रभु स्वयं जन्म - मृत्यु से ऊपर हैं। ('न मृतं यस्मात्') = प्रभु का स्मरण करनेवाला भी मृत्यु से ऊपर उठ जाता है। [ख] (धाम) = ये प्रभु तेज के पुञ्ज हैं [धाम = तेजस्] अथवा ये प्रभु सबके (धाम) = घर हैं । यही भावना गत मन्त्र में 'यत्र विश्वं भवत्येकनीडम्' शब्द से कही गई थी। वे प्रभु सबके अद्वितीय आधार हैं। [ग] (विभृतं गुहा) = ये प्रभु बुद्धिरूप (गुहा) = में निहित हैं। यह हृदय स्थली ही 'परम-परार्ध' कहलाती है। यहाँ प्रभु का सर्वोत्कृष्ट निवासस्थान है। विशेषकर इसलिए कि यहाँ प्रभु का दर्शन होना है । [घ] (सत्) = वे प्रभु पूर्ण निर्विकार हैं अथवा सदा उपस्थित हैं। मैं मिलने जाऊँ और वे घर पर न हों यह नहीं हो सकता। ३. एवं, वे प्रभु 'अमृत' हैं, 'धाम' हैं और 'सत्' हैं। (अस्य) = उस प्रभु के (त्रीणि पदानि) = ये तीन पद गुहा (निहिता) = गुहा में निहित हैं, अर्थात् अत्यन्त (गुह्य) = रहस्यमय हैं। (यः) = जो तानि प्रभु के इन तीन पदों को, ज्ञेय बातों को वेद - जानता है (सः) = वह (पितुः) = पिता का भी पिता (असत्) = पिता होता है। ज्ञान को देनेवाला 'पिता' कहलाता है। प्रभु के तीन पदों को जाननेवाला ज्ञानियों का भी ज्ञानी होता है, अतः इसे यहाँ पिता का भी पिता कहा है।
भावार्थ
भावार्थ - उस 'अमृत, सत्, धाम' का प्रवचन ज्ञानी लोग करें। हम प्रभु के इन पदों को जानकर पिताओं के पिता-ज्ञानियों के भी ज्ञानी बनें।
मन्त्रार्थ
(गन्धर्वः) गौ- स्तुति-वाणी को धारण करने वाला उपासक (गुहा विभृतं सत्) हृदय गुहा में विशेष रूप से धृत-स्थित हुए (तत्-अमृतं धाम विद्वान्) उस अमृत पद को जानता हुआ (नु प्रवोचत्) उसका अवश्य प्रवचन करे (अस्य त्रीणि पदानि गुहा निहितानि) इस परमात्मा के तीन पद सूक्ष्मा-व्यक्तमोक्ष गत स्वरूप हृदय गुहा में गुत हैं (तानि यः-वेद) उन्हें जो जानता है (सः-पितुः पिता-असत्) वह अपने पिता बालक का भी पिता- पालक है अध्यात्मज्ञान वाला होने से ॥९॥
विशेष
ऋषिः-स्वयम्भु ब्रह्म १-१२ । मेधाकामः १३-१५ । श्रीकामः १६ ।। देवताः-परमात्मा १-२, ६-८ १०, १२, १४। हिरण्यगर्भः परमात्मा ३ । आत्मा ४ । परमेश्वरः ५ । विद्वान् । इन्द्रः १३ । परमेश्वर विद्वांसौ १५ । विद्वद्राजानौ १६ ॥
मराठी (3)
भावार्थ
हे माणसांनो ! जे विद्वान लोक बुद्धीमध्ये धारण केलेल्या ईश्वराच्या यथायोग्य मुक्ती देणाऱ्या स्वरूपाचा उपदेश करतात व ईश्वराच्या आणि पदार्थांच्या गुण, कर्म, स्वभावाला जाणतात ते आपले पिता वगैरेचेही रक्षक असतात (व सर्वरक्षक ईश्वराचे ज्ञान देतात म्हणून अस्तिकतेचेही रक्षक असतात) हे जाणा.
विषय
पुन्हा, त्याच विषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे मनुष्यांनो, (यः) जो (गन्धर्वः) वेदवाणीज्ञाता (तसद्वान) पंडित (गुहा) आपल्या बुद्धीमधे (विभृतम्) ईश्वराला विशेषत्वानें धारण करतो आणि (अमृतम्) अविनाशी (धाम) मुक्तिचे धाम असलेल्या (तत्) त्या (सत्) नित्य, चेतन ब्रह्माविषयी (नु) शीघ्र (प्र, वोचेत्) त्याच्या गुण, कर्म स्वभावाविषयी उपदेश करतो (तो श्रेष्ठ विद्वान मानावा) तसेच (अस्य) या अविनाशी ईश्वराच्या (गुहा) ज्ञानात (निहिता) स्थित (पदानि) ज्ञातव्य (त्रीणि) उत्पत्ती, स्थिती, प्रलय या तीन स्थितीविषयी अथवा भूत, भविष्य, वर्तमान या तीन काळांविषयी (तानि) त्या सर्वांना पूर्णपणे (वेद) जाणतो (सः) वह (पितुः) पित्याचा (पिता) ज्ञानदाता (गुरूचा गुरू) जाणवा अथवा सर्वरक्षक ईश्वराचा (पिता) आस्तिकत्वाचा रक्षक (असत्) होतो (तो ज्ञानदाता विद्वान पित्याप्रमाणे व ईश्वराप्रमाणे रक्षक मानावा. ॥9॥
भावार्थ
भावार्थ - हे मनुष्यांनो, जे विद्वान ईश्वराच्या मुक्तिसाधक बुद्धिस्य स्वरूपाविषयी उपदेश करतात, वस्तूंचा आणि ईश्वराच्या गुण, कर्म, स्वभावाविषयी जाणतात, ते मानाच्या दृष्टीने पिता, प्रपिता आदीपेक्षा पूजनीय आणि रक्षणिय असतात. (त्या महान विद्वानांची सर्वांनी रक्षा केली पहिजे) ॥9॥
विषय
स्तुती
व्याखान
वेद व विद्वान यांच्याकडून प्रतिष्ठा प्राप्त करण्यायोग्य जे ब्रह्म अमृत व मुक्तीचे धाम आहे ते सर्वांचे धारक पोषक असून सर्वांच्या बुद्धीचे साक्षीदार आहेत, त्याचाच उपदेश [धारण करणाऱ्या] आत्मसात करणाऱ्या जिशनाला गंधर्व म्हटले जाते. [गच्छतीति गं=ब्रह्म, तद्धरतीति स गन्धर्वः] त्या सर्व व्यापक ब्रह्माला जो धारण करतो त्याचे नाव गंधर्व आहे. परमेश्वराचे तीन पद आहेत. जगाची उत्पत्ती, स्थिती व प्रलय हे ते तीन पद होत. ईश्वराला व त्याच्या तिन्ही पदांना [सामर्थ्याला] जो अंतःकरण पूर्वक जाणतो तो पित्याचाही पिता आहे. अर्थात विद्वानांमध्ये ही विद्वान आहे. ॥२४॥
इंग्लिश (4)
Meaning
May the learned person, who knows the Vedas, soon expatiate upon the Eternal and Conscious God, the Imperishable abode of salvation, and hidden in intellect. There are three steps of eternal God, placed in comprehension. He who knows them becomes the watchman of God through theism.
Meaning
The man of knowledge gifted with the divine voice may speak of this immortal haven and eternal spirit covered in mystery yet shining in the soul. Three parts of it are hidden in the cave. He who knows them is the man of super-wisdom, father of the paternal wise.
Purport
Expoundable by the Vedas, other scriptures and You are Immortal [free learned men O Supreme Soul! You form the clutches of births and deaths], abode of liberated souls, Omnipresent, upholder and nourisher of all, witness of the intellects of all. The learned, who knows your these attributes, and adopts these in his preaches about Is life; you, he is called a 'Gandharva'. He who realises the Omnipresent Supreme Being is a Gardharva. MA
There are three steps of God i.e. the creation of the world, sustainance of the world and dissolution of the world. He who knows these three steps and he who realises God in the temple of his heart he is a father of the father i.e. he is the most learned among the profoundly THE learned.
Translation
Let the enlightened scholar, who knows, discourse in detail about the Immortal one, who is, as if in a secret cave, divided in different forms. Three of His feet are hidden in the cave. He, who knows them, is the father's father. (1)
Notes
Trini padani, three of His feet; three fourth of His existence. Pituḥ pitä, father's father. Father is wiser than son; most wise. Asat, अस्ति, is.
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ–হে মনুষ্যগণ! (য়ঃ) যে (গন্ধর্ব) বেদবাণীর ধারক (বিদ্বান্) পন্ডিত (গুহা) বুদ্ধিতে (বিভৃতম্) বিশেষ ধারণ কৃত (অমৃতম্) নাশরহিত (ধাম) মুক্তির স্থান (তৎ) সেই (সৎ) নিত্য চেতন ব্রহ্মের (নু) শীঘ্র (প্র, বোচেৎ) গুণ-কর্ম-স্বভাবের সহিত উপদেশ করিবে এবং যে (অস্য) এই অবিনাশী ব্রহ্মের (গুহা) জ্ঞানে (নিহিতা) স্থিত (পদানি) জানিবার যোগ্য (ত্রীণি) তিন উৎপত্তি, স্থিতি, প্রলয় অথবা ভূত, ভবিষ্যৎ, বর্ত্তমান কাল, (তানি) তাহাদেরকে (বেদ) জানে (সঃ) সে (পিতুঃ) স্বীয় পিতা বা সর্বরক্ষক ঈশ্বরের (পিতা) জ্ঞান দাতা বা আস্তিকত্ব দ্বারা রক্ষক (অসৎ) হউক ॥ ঌ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–হে মনুষ্যগণ! যে সব বিদ্বান্গণ ঈশ্বরের মুক্তি সাধক বুদ্ধিস্থ স্বরূপের উপদেশ করিবেন, সঠিক পদার্থগুলির এবং ঈশ্বরের গুণ, কর্ম, স্বভাবকে জানিবেন, তাঁহারা আয়ুতে বড় পিতাদিকেও রক্ষার যোগ্য হইয়া থাকেন, এইরকম জানিবে ॥ ঌ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
প্র তদ্বো॑চেদ॒মৃতং॒ নু বি॒দ্বান্ গ॑ন্ধ॒র্বো ধাম॒ বিভৃ॑তং॒ গৃহা॒ সৎ ।
ত্রীণি॑ প॒দানি॒ নিহি॑তা॒ গুহা॑স্য॒ য়স্তানি॒ বেদ॒ স পি॒তুঃ পি॒তাऽস॑ৎ ॥ ঌ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
প্র তদিত্যস্য স্বয়ম্ভু ব্রহ্ম ঋষিঃ । বিদ্বান্ দেবতা । নিচৃৎ ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
ধৈবতঃ স্বরঃ ॥
नेपाली (1)
विषय
स्तुतिविषयः
व्याखान
हे वेदादिशास्त्र र विद्वान् हरु ले गर्न योग्य भगवन् ! जुन अमृतम् अमृत [मरणादि दोषरहित] मुक्त हरु को धाम निवासस्थान, सर्वगत, सबैलाई धारण र पोषण गर्ने सबैका बुद्धि हरु को साक्षी ब्रह्म हो यो तपाईंको उपदेश तथा धारण लाई जुन विद्वान् जान्दछ त्यो गन्धर्वः=गन्धर्व कहलाउँछ [गच्छतीति गं= ब्रह्म, तद्धरतीति स गन्धर्वः] सर्वगत ब्रह्म लाई जसले धारण गर्द छ तेसको नाम 'गन्धर्व' हो तथा त्रीणि पदानि निहिता गुहा अस्य यः तानि वेद - परमात्मा का तीन पद छन् जगत् को उत्पति, स्थिति र प्रलय गर्ने सामर्थ्य ई तीन लाई तथा ईश्वर लाई जो स्वहृदय मा जान्द छ, सः, पितुः, पिता असत् = त्यो पिता को पनि पिता हो अर्थात् विद्वान् हरु को पनि विद्वान् हो । ॥२४॥
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