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अथर्ववेद - काण्ड 1/ सूक्त 15/ मन्त्र 1
सूक्त - अथर्वा
देवता - सिन्धुसमूहः
छन्दः - भुरिग्बृहती
सूक्तम् - पुष्टिकर्म सूक्त
सं सं स्र॑वन्तु॒ सिन्ध॑वः॒ सं वाताः॒ सं प॑त॒त्रिणः॑। इ॒मं य॒ज्ञं प्र॒दिवो॑ मे जुषन्तां संस्रा॒व्ये॑ण ह॒विषा॑ जुहोमि ॥
स्वर सहित पद पाठसम् । सम् । स्र॒व॒न्तु॒ । सिन्ध॑व: । सम् । वाता॑: । सम् । प॒त॒त्रिण॑: ।इ॒मम् । य॒ज्ञम् । प्र॒ऽदिव॑: । मे॒ । जु॒ष॒न्ता॒म् । स॒म्ऽस्रा॒व्येण । ह॒विषा॑ । जु॒हो॒मि॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
सं सं स्रवन्तु सिन्धवः सं वाताः सं पतत्रिणः। इमं यज्ञं प्रदिवो मे जुषन्तां संस्राव्येण हविषा जुहोमि ॥
स्वर रहित पद पाठसम् । सम् । स्रवन्तु । सिन्धव: । सम् । वाता: । सम् । पतत्रिण: ।इमम् । यज्ञम् । प्रऽदिव: । मे । जुषन्ताम् । सम्ऽस्राव्येण । हविषा । जुहोमि ॥
अथर्ववेद - काण्ड » 1; सूक्त » 15; मन्त्र » 1
विषय - को सङ्गठन यज्ञ में आहुति
पदार्थ -
१. (सिन्धवः) = नदियाँ (सम) = मिलकर (संस्त्रवन्तु) = उत्तमता से बहती रहें। छोटे-छोटे स्त्रोत अलग-अलग ही बहते रहें तो वे शीघ्र ही सूख जाएँगे और उनमें किसी प्रकार की शक्ति भी नहीं दीखती। ये स्रोत मिलकर एक प्रबल वेगवाली नदी के रूप में बहते हैं और मार्ग में आये वृक्ष आदि को उखाड़कर आगे बढ़ते जाते हैं। २. इसीप्रकार (वाता:) = वायुएँ भी (सम्) = मिलकर ही प्रबल वेगवाली हो जाती हैं। बायुवेग भी अलग-अलग होकर बहना चाहें तो वे शायद पत्तों को भी न हिला सकें। ३. (पतत्त्रिण:) = पक्षी भी (सम्) = मिलकर ही शक्ति-सम्पन्न बनते हैं। एक टिडी का कोई अर्थ ही नहीं, परन्तु टिडीदल अत्यन्त भयङ्कर रूप धारण कर लेता है। ४. प्रभु कहते हैं कि-(मे) = मेरे (इमम्) = इस (यज्ञम्) = सङ्गठन के भाव को [यज्-सङ्गतिकरण] (प्रदिव:) = प्रकृष्ट ज्ञानी पुरुष (जुषन्ताम्) = प्रीतिपूर्वक सेवित करें । ज्ञानी सङ्गठन के महत्व को समझते हैं और वे मिलकर ही चलते हैं। अज्ञान व मूर्खता में सब अपने ही स्वार्थ को देखते हैं, परिणामतः वहाँ
सङ्गठन नहीं हो पाता। ५. एक ज्ञानी पुरुष निश्चय करता है कि (संत्राव्येन) = मिलकर चलने के लिए सङ्गठन के लिए हितकर (हविषा) = दान की वृत्ति से (जुहोमि) = मैं अपनी आय के अंश को आहुति के रूप में देता हूँ। यह अंश कर व दान के रूप में दिया जाकर सङ्गठन को दृढ़ बनानेवाला होता है।
भावार्थ -
नदियाँ, बायुएँ व पक्षिगण सङ्गठन के महत्त्व को व्यक्त कर रहे हैं। हम सङ्गठन यज्ञ में अवश्य आहुति देनेवाले हों।
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