Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 1 > सूक्त 17

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 1/ सूक्त 17/ मन्त्र 3
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - हिरा छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - रुधिरस्रावनिवर्तनधमनीबन्धन सूक्त

    श॒तस्य॑ ध॒मनी॑नां स॒हस्र॑स्य हि॒राणा॑म्। अस्थु॒रिन्म॑ध्य॒मा इ॒माः सा॒कमन्ता॑ अरंसत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    श॒तस्य॑ । ध॒मनी॑नाम् । स॒हस्र॑स्य । हि॒राणा॑म् । अस्थु॑: । इत् । म॒ध्य॒मा: । इ॒मा: । सा॒कम् । अन्ता॑: । अ॒रं॒स॒त॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शतस्य धमनीनां सहस्रस्य हिराणाम्। अस्थुरिन्मध्यमा इमाः साकमन्ता अरंसत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शतस्य । धमनीनाम् । सहस्रस्य । हिराणाम् । अस्थु: । इत् । मध्यमा: । इमा: । साकम् । अन्ता: । अरंसत ॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 1; सूक्त » 17; मन्त्र » 3

    पदार्थ -

    १. नाडीचक्र में एक और धमनियों हैं, दूसरी और हिराएँ हैं। धमनियों रुधिर को शरीर में भेज रही हैं और हिराएँ उसे पुन: हृदय में लौटा रही हैं। इनके बीच की नाड़ियों को रोकर कई बार इनके अन्तिम प्रदेशों [दोनों सिरों] को ठीक करना होता है। उसी का वर्णन करते हैं-(धमनीनां शतस्य) = सौं धमनियों के तथा हिराणां (सहस्त्रस्य) = हजारों हिराओं के (मध्यमाः इमा:) = बीच में होनेवाली नाड़ियाँ (इत:) = निश्चय से (अस्थुः) = रुक गई हैं। अब (अन्ता:) = इनके अन्तभाग (साकम) = साथ-साथ ही (अरंसत) = रुक गये हैं [रम्-to Pause] २. नाड़ीचक्र में धमनियों व हिराओं के बीच में होनेवाली योजक नाड़ियों का ठीक होना नितान्त आवश्यक है। इनके अन्तिम भाग भी ठीक होने आवश्यक हैं।

    भावार्थ -

    धमनियों और हिराओं के बीच की नाड़ियों के कार्य का ठीक होना नितान्त आवश्यक है।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top