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अथर्ववेद - काण्ड 1/ सूक्त 30/ मन्त्र 3
सूक्त - अथर्वा
देवता - विश्वे देवाः
छन्दः - शाक्वरगर्भा विराड्जगती
सूक्तम् - दीर्घायु प्राप्ति सूक्त
ये दे॑वा दि॒वि ष्ठ ये पृ॑थि॒व्यां ये अ॒न्तरि॑क्ष॒ ओष॑धीषु प॒शुष्व॒प्स्वन्तः। ते कृ॑णुत ज॒रस॒मायु॑र॒स्मै श॒तम॒न्यान्परि॑ वृणक्तु मृ॒त्यून् ॥
स्वर सहित पद पाठये । दे॒वा॒: । दि॒वि । स्थ । ये । पृ॒थि॒व्याम् । ये । अ॒न्तरि॑क्षे । ओष॑धीषु । प॒शुषु॑ । अ॒प्ऽसु । अ॒न्त: । ते । कृ॒णु॒त॒ । ज॒रस॑म् । आयु॑: । अ॒स्मै । श॒तम् । अ॒न्यान् । परि॑ । वृ॒ण॒क्तु॒ । मृ॒त्यून् ॥
स्वर रहित मन्त्र
ये देवा दिवि ष्ठ ये पृथिव्यां ये अन्तरिक्ष ओषधीषु पशुष्वप्स्वन्तः। ते कृणुत जरसमायुरस्मै शतमन्यान्परि वृणक्तु मृत्यून् ॥
स्वर रहित पद पाठये । देवा: । दिवि । स्थ । ये । पृथिव्याम् । ये । अन्तरिक्षे । ओषधीषु । पशुषु । अप्ऽसु । अन्त: । ते । कृणुत । जरसम् । आयु: । अस्मै । शतम् । अन्यान् । परि । वृणक्तु । मृत्यून् ॥
अथर्ववेद - काण्ड » 1; सूक्त » 30; मन्त्र » 3
विषय - अन्न, दूध व जल
पदार्थ -
१. (ये देवा:) = जो देव (दिवि स्थ) = युलोक में हो, (ये प्रथिव्याम्) = जो प्रथिवी पर हो (ये अन्तरिक्षे) = जो अन्तरिक्ष में हो और (ओषधीषु, पशुषु अप्सु अन्त:) = जो ओषधियों में, पशुओं में और जलों में हो (ते) = वे सब देव (अस्मै) = इसके लिए (जरसम् आयु:) = पूर्ण जरावस्था तक प्राप्त होनेवाले जीवन को (कृणुत) = करो। यह (शतम्) = सैकड़ों (अन्यान् मृत्युन्) = अन्य मृत्युओं को, रोगों से, दुर्घटनाओं [accidents] से होनेवाली मृत्युओं को (परिवणक्त) = अपने से दूर ही रक्खे। २. प्राकृतिक शक्तियों तेतीस भागों में बाँटी गई हैं-ग्यारह धुलोक में, ग्यारह अन्तरिक्ष में और ग्यारह पृथिवी पर । इन सबकी अनुकूलता होने पर क्रमश: मस्तिष्क, हृदय व शरीर का स्वास्थ्य निर्भर होता है। इनके अतिरिक्त ओषधियों में भी दिव्य गुण विद्यमान होते हैं। सूर्य-चन्द्र आदि से इनमें प्राणदायी तत्त्वों का स्थापन होता है। 'पयः पशूनाम्' इस अथर्व के संकेत के अनुसार पशुओं के दूध का प्रयोग अभीष्ट है। यह भी ओषधियों के सब दिव्य गुणों को लिये हुए होता है। जलों में तो सर्वरोगनाशक दिव्य तत्त्व प्रभु ने स्थापित किये ही हैं। अन्न, दूध व जल-इन सबका प्रयोग दीर्घ-जीवन का साधन बनता है। इनके ठीक प्रयोग से न रोग आते हैं और न असमय की मृत्यु होती है।
भावार्थ -
सब प्राकृतिक शक्तियों की अनुकूलता तथा 'अन्न, दूध व जल' का ठीक प्रयोग हमें रोगों से बचाए और पूर्ण जीवन प्राप्त कराए।
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