Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 15 > सूक्त 12

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 12/ मन्त्र 1
    सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - त्रिपदा गायत्री छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    तद्यस्यै॒वंवि॒द्वान्व्रात्य॒ उद्धृ॑तेष्व॒ग्निष्वधि॑श्रितेऽग्निहो॒त्रेऽति॑थिर्गृ॒हाना॒गच्छे॑त् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तत् । यस्य॑ । ए॒वम् । वि॒द्वान् । व्रात्य॑: । उध्दृ॑तेषु । अ॒ग्निषु॑ । अधि॑ऽश्रिते । अ॒ग्नि॒ऽहो॒त्रे । अति॑थि: । गृ॒हान् । आ॒ऽगच्छे॑त् ॥१२.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तद्यस्यैवंविद्वान्व्रात्य उद्धृतेष्वग्निष्वधिश्रितेऽग्निहोत्रेऽतिथिर्गृहानागच्छेत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तत् । यस्य । एवम् । विद्वान् । व्रात्य: । उध्दृतेषु । अग्निषु । अधिऽश्रिते । अग्निऽहोत्रे । अतिथि: । गृहान् । आऽगच्छेत् ॥१२.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 12; मन्त्र » 1

    पदार्थ -

    १. (तत्) = इसलिए (यस्य गृहान्) = जिसके घर पर (एवं विद्वान् वात्यः) = [इण् गतौ] सर्वत्र गतिवाले प्रभु को जाननेवाला व्रती (उद्धृतेषु अग्निषु) = अग्नियों के गाई पत्य से उठाकर आहवनी में आधान किये जाने पर (अग्निहोत्रे अधिश्रिते) = अग्निहोत्र के प्रारम्भ होने की तैयारी हो जाने पर (अतिथिः आगच्छेत्) = अतिथि के रूप में प्राप्त हो तो (स्वयम्) = अपने-आप (एनं अभि उदेत्य) = इसके प्रति प्राप्त होकर कहे कि हे (व्रात्य) = वतिन्। (अतिसृज) = आप मुझे अनुज्ञा दीजिए जिससे (होष्यामि इति) = मैं यज्ञ करूँ। २. इसप्रकार अनुज्ञा मांगने पर (सः च अतिसृजेत्) = यदि वह अनुज्ञया दे दे तो (जुहुयात्) = अग्निहोत्र करे, परन्तु यदि न (च अतिसृजेत) = यदि वह अनुज्ञा न दे तो न (जुहुयात्) = अग्निहोत्र न करे।

    भावार्थ -

    अग्निहोत्र प्रारम्भ होने के अवसर पर अकस्मात् अतिथि आ जाए तो गृहस्थ वात्य का आदरपूर्वक स्वागत करे। उससे अनुज्ञया लेकर ही अग्निहोत्र करे। जबतक अतिथि अनुजया न दे तब अग्निहोत्र स्थगित रक्खे।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top