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अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 20/ मन्त्र 3
सूक्त - अथर्वा
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - पुरस्ताद्बृहती
सूक्तम् - सुरक्षा सूक्त
यत्ते त॒नूष्वन॑ह्यन्त दे॒वा द्युरा॑जयो दे॒हिनः॑। इन्द्रो॒ यच्च॒क्रे वर्म॒ तद॒स्मान्पा॑तु वि॒श्वतः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठयत्। ते। त॒नूषु॑। अन॑ह्यन्त। दे॒वाः। द्युऽरा॑जयः। दे॒हिनः॑। इन्द्रः॑। यत्। च॒क्रे। वर्म॑। तत्। अ॒स्मान्। पा॒तु॒। वि॒श्वतः॑ ॥२०.३॥
स्वर रहित मन्त्र
यत्ते तनूष्वनह्यन्त देवा द्युराजयो देहिनः। इन्द्रो यच्चक्रे वर्म तदस्मान्पातु विश्वतः ॥
स्वर रहित पद पाठयत्। ते। तनूषु। अनह्यन्त। देवाः। द्युऽराजयः। देहिनः। इन्द्रः। यत्। चक्रे। वर्म। तत्। अस्मान्। पातु। विश्वतः ॥२०.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 20; मन्त्र » 3
विषय - 'देही देवों' से दत्त कवच
पदार्थ -
१. प्रभु महादेव हैं। उत्तम 'माता, पिता व आचार्य' देहधारी देव हैं। माता बालक को "चरित्र' का कवच धारण कराती है, पिता 'शिष्टाचार का तथा आचार्य 'ज्ञान' का। (यत्) = जिस (वर्म) = कवच को (ते) = तेरे (तनूषु) = शरीरों पर [स्थूल, सूक्ष्म, कारणनामक शरीरों पर] (द्युराजय:) = ज्ञान से दीप्त होनेवाले (देहिनः) = शरीरधारी (देवा:) = देव-माता, पिता तथा आचार्य अनान्त-बाँधते हैं। (तत्) = वह 'चरित्र, शिष्टाचार व ज्ञान' का कवच (अस्मान्) = हमें (विश्वत:) = सब ओर से (पातु) = रक्षित करे। २. इन कवचों के अतिरिक्त (यत् वर्म) = जिस कवच को (इन्द्रः सर्वशक्तिमान्) = परमैश्वर्यशाली प्रभु ने (चक्रे) = बनाया है। प्रभु ने शरीर में सोमशक्ति को स्थापित किया है। यह 'सोम' रोगों को रोकने के लिए सर्वोत्तम कवच है। यह सोम का कवच ही हमें सब ओर से सुरक्षित करे ।
भावार्थ - सुशिक्षित माता 'चरित्र' के कवच को धारण कराती है, कुशल पिता 'शिष्टाचार' के कवच को धारण कराता है, आचार्य'ज्ञान' के कवच को। प्रभु ने हमें 'सोमशक्ति' का कवच पहनाया है। ये कवच हमारा रक्षण करें।
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