अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 39/ मन्त्र 5
सूक्त - भृग्वङ्गिराः
देवता - कुष्ठः
छन्दः - चतुरवसाना सप्तपदा शक्वरी
सूक्तम् - कुष्ठनाशन सूक्त
त्रिः शाम्बु॑भ्यो॒ अङ्गि॑रेभ्य॒स्त्रिरा॑दि॒त्येभ्य॒स्परि॑। त्रिर्जा॒तो वि॒श्वदे॑वेभ्यः। स कुष्ठो॑ वि॒श्वभे॑षजः सा॒कं सोमे॑न तिष्ठति। त॒क्मानं॒ सर्वं॑ नाशय॒ सर्वा॑श्च यातुधा॒न्यः ॥
स्वर सहित पद पाठत्रिः। शाम्बु॑ऽभ्यः। अङ्गि॑रेभ्यः। त्रिः। आ॒दि॒त्येभ्यः॑। परि॑। त्रिः। जा॒तः। वि॒श्वऽदे॑वेभ्यः। सः। कुष्ठः॑। वि॒श्वऽभे॑षजः। सा॒कम्। सोमे॑न। ति॒ष्ठ॒ति॒। त॒क्मान॑म्। सर्व॑म्। ना॒श॒य॒। सर्वाः॑। च॒। या॒तु॒ऽधा॒न्यः᳡ ॥३९.५॥
स्वर रहित मन्त्र
त्रिः शाम्बुभ्यो अङ्गिरेभ्यस्त्रिरादित्येभ्यस्परि। त्रिर्जातो विश्वदेवेभ्यः। स कुष्ठो विश्वभेषजः साकं सोमेन तिष्ठति। तक्मानं सर्वं नाशय सर्वाश्च यातुधान्यः ॥
स्वर रहित पद पाठत्रिः। शाम्बुऽभ्यः। अङ्गिरेभ्यः। त्रिः। आदित्येभ्यः। परि। त्रिः। जातः। विश्वऽदेवेभ्यः। सः। कुष्ठः। विश्वऽभेषजः। साकम्। सोमेन। तिष्ठति। तक्मानम्। सर्वम्। नाशय। सर्वाः। च। यातुऽधान्यः ॥३९.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 39; मन्त्र » 5
विषय - शाम्बु, आदित्य, विश्वदेव
पदार्थ -
१. (त्रि:) = तीन बार प्रयोग किया हुआ कुष्ठ नामक औषध (शाम्बुभ्यः) = [शम्म् to go] गतिशील (अंगिरेभ्यः) = यज्ञादि में प्रवृत्त कर्मकाण्डियों के लिए (परिजात:) = सर्वथा होता है। यह औषध उन्हें नौरोग बनाकर उत्तम कर्मों में प्रवृत्त करता है। (त्रि:) = तीन बर प्रयोग किया हुआ (यः आदित्येभ्यः) = 'प्रकृति, जीव व परमात्मा' के ज्ञान का आदान करनेवाले आदित्यों के लिए होता है। उन्हें नीरोग बनाकर उत्कृष्ट ज्ञानी बनाता है यह (त्रि:) = तीन बार प्रयुक्त हुआ-हुआ (विश्वदेवेभ्य:) = सर्वदेवों के लिए (जात:) = हो जाता है। यह उन्हें नौरोग बनाकर देव बनाता है। कुष्ठ औषध का प्रयोग नीरोगता के द्वारा हमें 'क्रियाशील, ज्ञानी व देववृत्ति का' बनाता है। २. (सः कुष्ठः विश्वभेषज:) = वह कुष्ठ औषध सब रोगों की चिकित्सा है। यह सोमेन साकं तिष्ठति-गुणों के दृष्टिकोण से सोम के साथ स्थित होता है। जैसे शरीरस्थ सोम [वीर्य] सर्वोषध है, उसी प्रकार यह कुष्ठ भी सर्वोषध है। हे कुष्ठ! तू (सर्वतक्मानम्) = सब ज्वरों को (नाशय) = नष्ट कर (च) = और (सर्वाः यातुधान्य:) = सब पीड़ा का आधान करनेवाली बीमारियों को नष्ट कर।
भावार्थ - दिन में तीन बार प्रयुक्त हुआ 'कुष्ठ' हमें 'गतिशील, ज्ञानी व देव' बनाता है। यह हमारे शरीर, मस्तिष्क व मन' तीनों को नीरोग बनाता है। यह वीर्य के समान ही महिमावाला है। सब रोगों को दूर करता है।
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