अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 39/ मन्त्र 7
सूक्त - भृग्वङ्गिराः
देवता - कुष्ठः
छन्दः - चतुरवसानाष्टपदाष्टिः
सूक्तम् - कुष्ठनाशन सूक्त
हि॑र॒ण्ययी॒ नौर॑चर॒द्धिर॑ण्यबन्धना दि॒वि। तत्रा॒मृत॑स्य॒ चक्ष॑णं॒ ततः॒ कुष्ठो॑ अजायत। स कुष्ठो॑ वि॒श्वभे॑षजः सा॒कं सोमे॑न तिष्ठति। त॒क्मानं॒ सर्वं॑ नाशय॒ सर्वा॑श्च यातुधा॒न्यः ॥
स्वर सहित पद पाठहि॒र॒ण्ययी॑। नौः। अ॒च॒र॒त्। हिर॑ण्यऽबन्धना। दि॒वि। तत्र॑। अ॒मृत॑स्य। चक्ष॑णम्। ततः॑। कुष्ठः॑। अ॒जा॒य॒त॒। सः। कुष्ठः॑। वि॒श्वऽभे॑षजः। सा॒कम्। सोमे॑न। ति॒ष्ठ॒ति॒। त॒क्मान॑म्। सर्व॑म्। ना॒श॒य॒। सर्वाः॑। च॒। या॒तु॒ऽधा॒न्यः᳡ ॥३९.७॥
स्वर रहित मन्त्र
हिरण्ययी नौरचरद्धिरण्यबन्धना दिवि। तत्रामृतस्य चक्षणं ततः कुष्ठो अजायत। स कुष्ठो विश्वभेषजः साकं सोमेन तिष्ठति। तक्मानं सर्वं नाशय सर्वाश्च यातुधान्यः ॥
स्वर रहित पद पाठहिरण्ययी। नौः। अचरत्। हिरण्यऽबन्धना। दिवि। तत्र। अमृतस्य। चक्षणम्। ततः। कुष्ठः। अजायत। सः। कुष्ठः। विश्वऽभेषजः। साकम्। सोमेन। तिष्ठति। तक्मानम्। सर्वम्। नाशय। सर्वाः। च। यातुऽधान्यः ॥३९.७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 39; मन्त्र » 7
विषय - हिरण्यबन्धना नौः
पदार्थ -
१. (दिवि) = द्युलोक में यह सूर्य (हिरण्ययी) = ज्योतिर्मयी (नौ) = नाव ही (अचरत्) = गति कर रही है। द्युलोक समुद्र है तो सूर्य उसमें एक चमकीली नाव है। यह नाव (हिरण्यबन्धना) = हितरमणीय वीर्य [हिरण्यं वै वीर्यम] के बन्धनवाली है। सभी प्राणशक्ति इस सूर्य में ही है। (तत्र) = वहाँ उस सूर्य में (अमृतस्य चक्षणम्) = अमृत का दर्शन होता है-सारी जीवनीशक्ति यहाँ सूर्य में ही स्थापित है। (तत:) = उस सूर्य से ही (कुष्ठ:) = यह कुष्ठ नामक औषध (अजायत) = उत्पन्न हुई है। (सः) = वह कुष्ठ भी विश्वभेषज है |
भावार्थ - द्युलोकस्वरूपी समुद्र में स्थित ज्योतिर्मय नाव के समान इस सूर्य में ही सारी प्राणशक्ति रक्खी है। कुष्ठ में यहीं से यह शक्ति आयी है, अत: कुष्ठ सर्वभेषज है।
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