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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 47

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 47/ मन्त्र 7
    सूक्त - गोपथः देवता - रात्रिः छन्दः - त्र्यवसाना षट्पदा जगती सूक्तम् - रात्रि सूक्त

    माश्वा॑नां भद्रे॒ तस्क॑रो॒ मा नृ॒णां या॑तुधा॒न्यः। प॑र॒मेभिः॑ प॒थिभिः॑ स्ते॒नो धा॑वतु॒ तस्क॑रः। परे॑ण द॒त्वती॒ रज्जुः॒ परे॑णाघा॒युर॑र्षतु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मा। अश्वा॑नाम्। भ॒द्रे॒। तस्क॑रः। मा। नृ॒णाम्। या॒तु॒ऽधा॒न्यः᳡। प॒र॒मेभिः॑। प॒थिऽभिः॑। स्ते॒नः। धा॒व॒तु॒। तस्क॑रः। परे॑ण। द॒त्वती॑। रज्जुः॑। परे॑ण। अ॒घ॒ऽयुः। अ॒र्ष॒तु॒ ॥४७.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    माश्वानां भद्रे तस्करो मा नृणां यातुधान्यः। परमेभिः पथिभिः स्तेनो धावतु तस्करः। परेण दत्वती रज्जुः परेणाघायुरर्षतु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मा। अश्वानाम्। भद्रे। तस्करः। मा। नृणाम्। यातुऽधान्यः। परमेभिः। पथिऽभिः। स्तेनः। धावतु। तस्करः। परेण। दत्वती। रज्जुः। परेण। अघऽयुः। अर्षतु ॥४७.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 47; मन्त्र » 7

    पदार्थ -
    १. हे (भद्रे) = सुरक्षा की व्यवस्था से सुख देनेवाली रात्रि। (तस्करः) = प्रसिद्ध अनर्थों को करनेवाला चोर (अश्वानाम्) = हमारे घोड़ों का (मा) = [ईशत] मत स्वामी बने । (यातुधान्य:) = पीड़ा का आधान करनेवाले लोग (नृणां मा) = हमारे मनुष्यों पर प्रबल न हो जाएँ। वे उन्हें पीड़ित न कर सकें। २. (तस्करः) = अनर्थ करनेवाला (स्तेन:) = धन चुरानेवाला चोर (परमेभिः पथिभिः) = अति दूर मार्गों से (धावतु) = भाग जाए। रक्षकों की व्यवस्था के कारण चोरों का भय ही न रहे। (दत्वती रज्जुः) = यह दाँतवाली रस्सी-रस्सी की भाँति लम्बे सर्प आदि डसनेवाले प्राणी परेण-अति दूर मार्ग से गतिवाले हौं। (अघायु:) = दूसरे की हिंसा की कामनावाला दुष्ट पुरुष (परेण अर्षतु) = सुदूर मार्ग से जानेवाला हो।

    भावार्थ - उत्तम रक्षण-व्यवस्था से हमारे पशुओं व बसुओं को हिंसा का भय न हो। चोर, सर्प व अघायु पुरुष समीप भी न फटकने पाएँ।

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