अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 47/ मन्त्र 3
ये ते॑ रात्रि नृ॒चक्ष॑सो द्र॒ष्टारो॑ नव॒तिर्नव॑। अ॑शी॒तिः सन्त्य॒ष्टा उ॒तो ते॑ स॒प्त स॑प्त॒तिः ॥
स्वर सहित पद पाठये। ते॒। रा॒त्रि॒। नृ॒ऽचक्ष॑सः। द्र॒ष्टारः॑। न॒व॒तिः। नव॑। अ॒शी॒तिः। सन्ति॑। अ॒ष्टौ। उ॒तो इति॑। ते॒। स॒प्त। स॒प्त॒तिः ॥४७.३॥
स्वर रहित मन्त्र
ये ते रात्रि नृचक्षसो द्रष्टारो नवतिर्नव। अशीतिः सन्त्यष्टा उतो ते सप्त सप्ततिः ॥
स्वर रहित पद पाठये। ते। रात्रि। नृऽचक्षसः। द्रष्टारः। नवतिः। नव। अशीतिः। सन्ति। अष्टौ। उतो इति। ते। सप्त। सप्ततिः ॥४७.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 47; मन्त्र » 3
विषय - निन्यानवे, अट्ठासी सतत्तर
पदार्थ -
१. हे (रात्रि) = रात्रिदेवि! (ये) = जो (ते) = तेरे (नृचक्षस:) = मनुष्यों को देखनेवाले, अर्थात् मनुष्यों का ध्यान करनेवाले (नवतिः नव) = नव्वे और नौ, अर्थात् निन्यानवे (द्रष्टारः) = ट्रष्टा-रक्षक हैं अथवा (अष्टा अशीतिः) = अट्ठासी रक्षक हैं (उतो) = अथवा (ते) = तेरे जो (सप्त सप्ततिः) = सतत्तर रक्षक हैं। [तेभिः पायुभिः तु अद्य नः पाहि-] उन रक्षकों के द्वारा तू हमारा रक्षण कर। २. राजा राष्ट्र में रात्रि के समय राष्ट्र के विस्तार के अनुसार, निन्यानवे, अट्ठासी व सतत्तर रक्षकों को नियुक्त करता है। इनसे रक्षित प्रजा सुख की नींद सो पाती है [सुम्नायि] उनका धन सुरक्षित रहता है[रेवति] उनके अन्नों को नष्ट होने का किसी प्रकार का खतरा नहीं होता [वाजिनि]।
भावार्थ - राजा रात्रि के समय राष्ट्र के विस्तार के अनुसार निन्यानवे, अट्ठासी व सतत्तर रक्षकों की नियुक्ति करे।
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