Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 52

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 52/ मन्त्र 5
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - कामः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - काम सूक्त

    यत्का॑म का॒मय॑माना इ॒दं कृ॒ण्मसि॑ ते ह॒विः। तन्नः॒ सर्वं॒ समृ॑ध्यता॒मथै॒तस्य॑ ह॒विषो॑ वीहि॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत्। का॒म॒। का॒मय॑मानाः। इ॒दम्। कृ॒ण्मसि॑। ते॒। ह॒विः। तत्। नः॒। सर्व॑म्। सम्। ऋ॒ध्य॒ता॒म्। अथ॑। ए॒तस्य॑। ह॒विषः॑। वी॒हि॒। स्वाहा॑ ॥५२.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यत्काम कामयमाना इदं कृण्मसि ते हविः। तन्नः सर्वं समृध्यतामथैतस्य हविषो वीहि स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत्। काम। कामयमानाः। इदम्। कृण्मसि। ते। हविः। तत्। नः। सर्वम्। सम्। ऋध्यताम्। अथ। एतस्य। हविषः। वीहि। स्वाहा ॥५२.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 52; मन्त्र » 5

    पदार्थ -
    १. हे काम 'काम' [आशे] (यत्) = जिस फल को (कामयमाना:) = चाहते हुए हम (ते) = तेरे (इदं हविः कृण्मसि) = इस हवि को करते हैं, अर्थात् जिस फल की कामना से हम यज्ञ करते हैं हमारी (तत् सर्वम्) = वह सब इच्छा (समृध्यताम्) = समृद्ध हो-फूले-फले। २. (अथ) = अब हे काम! (एतस्य) = इस दी हुई (हविष:) = हवि का तू (वीहि) = भक्षण कर। यह (हवि स्वाहा) = तेरे लिए सुहुत हो। हम जब किसी कामना से यज्ञ करें तब उसे सम्यक करनेवाले बनें।

    भावार्थ - मन से प्रेरित होकर ही मनुष्य यज्ञादि उत्तम कर्मों को किया करता है। सदा किया जाता हुआ हमारा यह यज्ञ फल से समृद्ध हो। [काम्यो हि वेदाधिगमः कर्मयोगश्च वैदिक:] अगले तीन सूक्तों में 'भृगु ऋषि हैं-ये ज्ञानाग्नि में आपने को परिपक्व करके प्रभु को 'काल' नाम से स्मरण करते हैं -

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top