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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 53

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 53/ मन्त्र 1
    सूक्त - भृगुः देवता - कालः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - काल सूक्त

    का॒लो अश्वो॑ वहति स॒प्तर॑श्मिः सहस्रा॒क्षो अ॒जरो॒ भूरि॑रेताः। तमा रो॑हन्ति क॒वयो॑ विप॒श्चित॒स्तस्य॑ च॒क्रा भुव॑नानि॒ विश्वा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    का॒लः। अश्वः॑। व॒ह॒ति॒। स॒प्तऽर॑श्मिः। स॒ह॒स्र॒ऽअ॒क्षः। अ॒जरः॑। भूरि॑ऽरेताः। तम्। आ। रो॒ह॒न्ति॒। क॒वयः॑। वि॒पः॒चितः॑। तस्य॑। च॒क्रा। भुव॑नानि। विश्वा॑ ॥५३.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कालो अश्वो वहति सप्तरश्मिः सहस्राक्षो अजरो भूरिरेताः। तमा रोहन्ति कवयो विपश्चितस्तस्य चक्रा भुवनानि विश्वा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कालः। अश्वः। वहति। सप्तऽरश्मिः। सहस्रऽअक्षः। अजरः। भूरिऽरेताः। तम्। आ। रोहन्ति। कवयः। विपःचितः। तस्य। चक्रा। भुवनानि। विश्वा ॥५३.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 53; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    १. (काल:) = सबका संख्यान करनेवाला [मृत्यु] (अश्व:) = भूत, भविष्यत, वर्तमानकाल की सब वस्तुओं का व्यापन करनेवाला, (सप्तरश्मि:) = सात छन्दोमयी वेदवाणीरूप सात रश्मियोंवाला यह प्रभु (वहति) = अपने पर आरोहण करनेवालों को अभिमत स्थान में प्रास कराता है। यह प्रभु (सहस्त्राक्ष:) = अनन्त आँखोंवाला है-सर्वत्र दृष्टिशक्तिवाला है। (अजर:) = कभी जीर्ण न होनेवाले वे प्रभु (भूरिरेता:) = प्रभूत जगत् सर्जनसमर्थशक्ति-सम्पन्न है। २. (विपश्चितः कवयः) = अधिगत परमार्थ ज्ञानी लोग (तम् अरोहन्ति) = उस प्रभु का आरोहण करते हैं। (तस्य) = उस प्रभु के (चक्रा) = [चक्रमणात् चक्रम् नि०४.२१] गन्तव्य स्थान (विश्वा भुवनानि) = सब भुवन हैं-बे प्रभु सब लोक-लोकान्तरों में व्याप्त हैं।

    भावार्थ - प्रभु काल, अश्व, सप्तरश्मि, सहस्राक्ष, अजर, व भूरिश्ता: हैं। तत्त्वद्रष्टा पुरुष ही इन प्रभु को प्राप्त करते हैं। प्रभु सब लोक-लोकान्तरों में गये हुए-व्यास हैं।

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