Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 2 > सूक्त 17

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 2/ सूक्त 17/ मन्त्र 7
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - प्राणः, अपानः, आयुः छन्दः - आसुरी उष्णिक् सूक्तम् - बल प्राप्ति सूक्त

    प॑रि॒पाण॑मसि परि॒पाणं॑ मे दाः॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प॒रि॒ऽपान॑म् । अ॒सि॒ । प॒रि॒ऽपान॑म् । मे॒ । दा॒: । स्वाहा॑ ॥१७.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    परिपाणमसि परिपाणं मे दाः स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    परिऽपानम् । असि । परिऽपानम् । मे । दा: । स्वाहा ॥१७.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 17; मन्त्र » 7

    पदार्थ -

    १. हे प्रभो! आप (परिपाणमसि) = सब ओर से रक्षा करनेवाले हैं। (मे) = मेरे लिए (परिपाणम्) = सर्वतो रक्षण को (दा:) = दीजिए। (स्वाहा) = यह शुभ प्रार्थना मेरी वाणी से सदा उच्चरित हो। २. मेरा शरीर रोगों से आक्रान्त न हो, मेरा मन रोगों से अभिभूत न हो और मेरी बुद्धि मन्दता का शिकार न हो जाए। स्वस्थ शरीर, निर्मल मन ब तीन बुद्धिवाला बनकर मैं पूर्ण जीवन को बिताऊँ।

    भावार्थ -

    प्रभु सब ओर से मेरे रक्षक हैं, अतः मैं रोगों व मन्दताओं से अक्रान्त हो ही कैसे सकता हूँ?

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top