Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 2 > सूक्त 26

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 2/ सूक्त 26/ मन्त्र 3
    सूक्त - सविता देवता - पशुसमूहः छन्दः - उपरिष्टाद्विराड्बृहती सूक्तम् - पशुसंवर्धन सूक्त

    सं सं स्र॑वन्तु प॒शवः॒ समश्वाः॒ समु॒ पूरु॑षाः। सं धा॒न्य॑स्य॒ या स्फा॒तिः सं॑स्रा॒व्ये॑ण ह॒विषा॑ जुहोमि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सम् । सम् । स्र॒व॒न्तु॒ । प॒शव॑: । सम् । अश्वा॑: । सम् । ऊं॒ इति॑ । पुरु॑षा: । सम् । धा॒न्य᳡स्य । या । स्‍फा॒ति: । स॒म्ऽस्रा॒व्ये᳡ण । ह॒विषा॑ । जु॒हो॒मि॒ ॥२६.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सं सं स्रवन्तु पशवः समश्वाः समु पूरुषाः। सं धान्यस्य या स्फातिः संस्राव्येण हविषा जुहोमि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सम् । सम् । स्रवन्तु । पशव: । सम् । अश्वा: । सम् । ऊं इति । पुरुषा: । सम् । धान्यस्य । या । स्‍फाति: । सम्ऽस्राव्येण । हविषा । जुहोमि ॥२६.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 26; मन्त्र » 3

    पदार्थ -

    १. (पशवः) = गौ आदि पशु (सं सं स्त्रवन्तु) = मिलकर सम्यक् गतिवाले हों। चारागाहों में एकत्र होने पर परस्पर लड़ न पड़ें। (अश्वा:) = घोड़े (सं) = [स्त्रवन्तु] मिलकर गतिवाले हों। इन पशुओं के (पूरुषा:) = रक्षक पुरुष (उ) = भी (सम्) = मिलकर गतिवाले हों। गोपों में परस्पर लड़ाई न हो जाए। इनकी लड़ाई में पशुओं की दुर्गति भी सम्भावित है ही। २. (धान्यस्य या स्फाति:) = धान्य की जो वृद्धि है, वह सं[स्त्रवन्तु] हमारे घरों में सम्यक् प्रवाहित हो। मैं (संस्त्राव्येण हविषा) = इन सबके संस्तव के लिए हितकर हवि के द्वारा (जुहोमि) = आहुति देता हूँ। राष्ट्र के सब घरों में अग्निहोत्र की ठीक व्यवस्था होने पर जहाँ शरीर व मानस नीरोगता प्राप्त होती है वहाँ गौओं, घोड़ों व धान्यों की कमी नहीं रहती।

    भावार्थ -

    घरों में अग्निहोत्र होने पर गौओं, घोड़ों, व धान्यों का प्रवाह ठीक रहता है।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top