अथर्ववेद - काण्ड 2/ सूक्त 7/ मन्त्र 2
सूक्त - अथर्वा
देवता - भैषज्यम्, आयुः, वनस्पतिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - शापमोचन सूक्त
यश्च॑ साप॒त्नः श॒पथो॑ जा॒म्याः श॒पथ॑श्च॒ यः। ब्र॒ह्मा यन्म॑न्यु॒तः शपा॒त्सर्वं॒ तन्नो॑ अधस्प॒दम् ॥
स्वर सहित पद पाठय: । च॒ । सा॒प॒त्न: । श॒पथ॑: । जा॒म्या: । श॒पथ॑: । च॒ । य: । ब्र॒ह्मा । यत् । म॒न्यु॒त: । शपा॑त् । सर्व॑म् । तत् । न॒:। अ॒ध॒:ऽप॒दम् ॥७.२॥
स्वर रहित मन्त्र
यश्च सापत्नः शपथो जाम्याः शपथश्च यः। ब्रह्मा यन्मन्युतः शपात्सर्वं तन्नो अधस्पदम् ॥
स्वर रहित पद पाठय: । च । सापत्न: । शपथ: । जाम्या: । शपथ: । च । य: । ब्रह्मा । यत् । मन्युत: । शपात् । सर्वम् । तत् । न:। अध:ऽपदम् ॥७.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 7; मन्त्र » 2
विषय - तीन शाप
पदार्थ -
१. गतमन्त्र के अनुसार मैं तो शपथ आदि की भाषा का प्रयोग करूँ ही नहीं (च) = और (यः सापत्न: शपथ:) = जो शत्रुओं से दिया गया शाप है (यः च) = और जो (जाम्या:) = किसी भी कुलीन स्त्री व बहिन आदि से दिया गया (शपथ:) = शाप है या कभी (यत्) = जो (ब्रह्मा) = कोई ज्ञानी पुरुष (मन्युतः) = हमारी गलती पर क्षणिक क्रोधावेश से (शपात्) = शाप देता है, (तत् सर्वम्) = वह सब (नः अधस्पदम्) = हमारे पौवों के तले हो, वह हमारे पाँव से कुचला जाए। इसका हमपर कोई प्रभाव न हो। हम इसके कारण उत्तेजित न हो उठे। २.शत्रुओं को दिये गये शाप को हम स्वाभाविक ही समझें। जब वह हमारा शत्रु है, तो अशुभ कहेगा ही। स्त्री किसी कारण से कुद्ध हो कुछ कह बैठती है तो वह भी सहना ही चाहिए। ब्रह्मा ने जो कुछ कठोर कह दिया तो आत्मनिरीक्षण २ में 'पसलियों को भी तोड़ दें'। इन शब्दों का प्रयोग विचित्र-सा लगता है, 'परन्तु शान्ति का भाव निर्बलता नहीं है। इसके स्पष्टीकरण के लिए यह आवश्यक ही है। विवशता में बल प्रयोग आवश्यक हो जाता है, कटु शब्दों का प्रयोग आवश्यक नहीं है। मधुरता और निर्बलता पर्यायवाची नहीं है।
भावार्थ -
हम क्रोध में अपशब्दों का उत्तर अपशब्दों में न दें। हम दुद् िपुरुष का पराभव करनेवाले हों।
विशेष -
इस सूक्त में हदय को उत्तम बनाकर गाली का उत्तर गाली में न देने का विधान है। शान्त रहने का प्रयत्न ही ठीक है। शान्ति में ही वास्तविक शक्ति है। अब यह 'अथर्वा' अपना ठीक से परिपाक करता हुआ भृगु बनता है [भ्रस्ज पाके]।अपना ठीक परिपाक करता हुआ आङ्गिरस' होता है। इसका एक-एक अंग रसमय होता है। यह शरीर को एकदम नीरोग बनाने में समर्थ होता है। इसकी आराधना निम्न प्रकार से है|