Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 141

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 141/ मन्त्र 1
    सूक्त - शशकर्णः देवता - अश्विनौ छन्दः - विराडनुष्टुप् सूक्तम् - सूक्त १४१

    या॒तं छ॑र्दि॒ष्पा उ॒त नः॑ प॑र॒स्पा भू॒तं ज॑ग॒त्पा उ॒त न॑स्तनू॒पा। व॒र्तिस्तो॒काय॒ तन॑याय यातम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    या॒तम् । छ॒र्दि:ऽपौ । उ॒त । न॒: । प॒र॒:ऽपा । भू॒तम् । ज॒ग॒त्ऽपौ । उ॒त । न॒: । त॒नू॒ऽपा ॥ व॒र्ति: । तो॒काय॑ । तन॑याय । या॒त॒म् ॥१४१.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यातं छर्दिष्पा उत नः परस्पा भूतं जगत्पा उत नस्तनूपा। वर्तिस्तोकाय तनयाय यातम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यातम् । छर्दि:ऽपौ । उत । न: । पर:ऽपा । भूतम् । जगत्ऽपौ । उत । न: । तनूऽपा ॥ वर्ति: । तोकाय । तनयाय । यातम् ॥१४१.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 141; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    १. हे प्राणापानो। आप (छर्दिष्याः) = हमारे शरीर-गृह के रक्षक होते हुए (यातम्) = हमें प्राप्त होओ। (उत) = और (न:) = हमारे लिए (परस्पा:) = अतिशयेन रक्षक व शत्रुओं से रक्षा करनेवाले (भूतम्) = होओ। (जगत्पा:) = इस संसार के आप रक्षक हों, (उत:) = और (न:) = हमारे (तनुपा:) = शरीरों के आप रक्षक बनें। २. (तोकाय तनयाय) = हमारे पुत्र-पौत्रों के लिए भी (वर्ति:) = रथ-मार्ग को (यातम्) = प्राप्त कराइए, अर्थात् वे सदा सन्मार्ग पर चलनेवाले हों।

    भावार्थ - प्राणसाधना हमारा सब प्रकार से रक्षण करनेवाली हो। हमारे पुत्र-पौत्रों को भी यह सन्मार्ग पर ले-चलनेवाली बने।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top