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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 52

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 52/ मन्त्र 3
    सूक्त - मेध्यातिथिः देवता - इन्द्रः छन्दः - बृहती सूक्तम् - सूक्त-५२

    कण्वे॑भिर्धृष्ण॒वा धृ॒षद्वाजं॑ दर्षि सह॒स्रिण॑म्। पि॒शङ्ग॑रूपं मघवन्विचर्षणे म॒क्षू गोम॑न्तमीमहे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कण्वे॑भि: । धृ॒ष्णो॒ इति॑ । आ । धृ॒षत् । वाज॑म् । द॒र्षि॒ । स॒ह॒स्रिण॑म् ॥ पि॒शङ्ग॑ऽरूपम् । म॒घ॒ऽव॒न् । वि॒ऽच॒र्ष॒णे॒ । म॒क्षु ।गोऽम॑न्तम् । ई॒म॒हे॒ ॥५२.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कण्वेभिर्धृष्णवा धृषद्वाजं दर्षि सहस्रिणम्। पिशङ्गरूपं मघवन्विचर्षणे मक्षू गोमन्तमीमहे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कण्वेभि: । धृष्णो इति । आ । धृषत् । वाजम् । दर्षि । सहस्रिणम् ॥ पिशङ्गऽरूपम् । मघऽवन् । विऽचर्षणे । मक्षु ।गोऽमन्तम् । ईमहे ॥५२.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 52; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    १. हे (धृष्णवो) = शत्रुओं का धर्षण करनेवाले प्रभो! आप (कण्वेभिः) = मेधावी पुरुषों के द्वारा उत्तम समझदार माता, पिता व आचार्य द्वारा वाजम् बल को (आदर्षि) = प्राप्त कराते हैं जोकि (धृषद्) = शत्रुओं का धर्षण करनेवाला है तथा (सहस्त्रिणम्) = [स हस् अथवा सहस्त्र] हमारे जीवन को आनन्दमय बनानेवाला है अथवा दीर्घजीवन का साधक है। २. हे (मघवन) = ऐश्वर्यशालिन! (विचर्षणे) = सर्वद्रष्टा प्रभो! हम आपसे (मक्षु) = शीघ्र उस जीवन की (ईमहे) = याचना करते हैं, जोकि (पिशंगरूपम्) = तेजस्वीरूपवाला व (गोमन्तम्) = प्रशस्त ज्ञानन्द्रियोंवाला है।

    भावार्थ - हे प्रभो! आप उत्तम माता, पिता व आचार्यों द्वारा हमें उस बल को प्राप्त कराइए जिससे हम वासनारूप शत्रुओं का धर्षण करते हुए आनन्दमय जीवनवाले हों-तेजस्वी व प्रशस्त ज्ञानेन्द्रियोंवाले बनें। अगले सूक्त का ऋषि भी मेध्यातिथि ही है -

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