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अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 7/ मन्त्र 4
इन्द्र॑ क्रतु॒विदं॑ सु॒तं सोमं॑ हर्य पुरुष्टुत। पि॒बा वृ॑षस्व॒ तातृ॑पिम् ॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्र॑ । क्र॒तु॒ऽविद॑म् । सु॒तम् । सोम॑म् । ह॒र्य॒ । पु॒रु॒ऽस्तु॒त॒ ॥ पिब॑ । आ । वृ॒ष॒स्व॒ । ततृ॑पिम् ॥७.४॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्र क्रतुविदं सुतं सोमं हर्य पुरुष्टुत। पिबा वृषस्व तातृपिम् ॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्र । क्रतुऽविदम् । सुतम् । सोमम् । हर्य । पुरुऽस्तुत ॥ पिब । आ । वृषस्व । ततृपिम् ॥७.४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 7; मन्त्र » 4
विषय - क्रतुवित्' सोम
पदार्थ -
इस मन्त्र की व्याख्या २०.६.२ पर द्रष्टव्य है।
भावार्थ - अपने जीवन में सोम का भरण करके यह 'भरद्धाज' बनता है-अपने में शक्ति भरनेवाला। यह बुराइयों का संहार करनेवाला 'कुत्सः' होता है तथा सबका मित्र 'विश्वामित्र' बनता है। अगले सूक्त के मन्त्रों के क्रमश: ये ही ऋषि हैं -
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