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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 78

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 78/ मन्त्र 1
    सूक्त - शंयुः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-७८

    तद्वो॑ गाय सु॒ते सचा॑ पुरुहू॒ताय॒ सत्व॑ने। शं यद्गवे॒ न शा॒किने॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तत् । व॒: । गा॒य॒ । सु॒ते । सचा॑ । पु॒रु॒ऽहू॒ताय॑ । सत्व॑ने ॥ शम् । यत् । गवे॑ । न । शा॒किने॑ ॥७८.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तद्वो गाय सुते सचा पुरुहूताय सत्वने। शं यद्गवे न शाकिने ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तत् । व: । गाय । सुते । सचा । पुरुऽहूताय । सत्वने ॥ शम् । यत् । गवे । न । शाकिने ॥७८.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 78; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    १.(व:) = तुम (सुते) = शरीर में सोम का सम्पादन करने पर (सचा) = मिलकर (पुरुहूताय) = पालक व पूरक पुकारवाले-जिसकी प्रार्थना हमारा पालन व पूरण करती है, उस (सत्वने) = शत्रुओं के सादयिता [नाशक] प्रभु के लिए (तद् गाय) = उन स्तोत्रों का गायन करो। २. (गवे) = उस [गमयति अर्थान्] वेदवाणी के द्वारा सब अर्थों के ज्ञापक (न) = [न-च] और (शाकिने) = सर्वशक्तिमान प्रभु के लिए उस स्तोत्र का गायन करो (यत्) = जो (शम्) = शान्ति देनेवाला हो। प्रभु को सर्वज्ञ व सर्वशक्तिमान् के रूप में सोचते हुए हम भी ज्ञान व शक्ति को प्राप्त करने की प्रेरणा लेते हैं और इसप्रकार जीवन में शान्ति प्राप्त करते हैं।

    भावार्थ - हम सोम-रक्षण करते हुए मिलकर घरों में प्रभु का गायन करें। यह गायन हमें ज्ञान व शक्ति प्राप्त करने की प्रेरणा देता है और हमारे जीवनों को शान्त बनाता है।

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