अथर्ववेद - काण्ड 3/ सूक्त 12/ मन्त्र 9
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - शाला, वास्तोष्पतिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - शालनिर्माण सूक्त
इ॒मा आपः॒ प्र भ॑राम्यय॒क्ष्मा य॑क्ष्म॒नाश॑नीः। गृ॒हानुप॒ प्र सी॑दाम्य॒मृते॑न स॒हाग्निना॑ ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒मा: । आप॑: । प्र । भ॒रा॒मि॒ । अ॒य॒क्ष्मा: । य॒क्ष्म॒ऽनाश॑नी: । गृ॒हान् । उप॑ । प्र । सी॒दा॒मि॒ । अ॒मृते॑न । स॒ह । अ॒ग्निना॑ ॥१२.९॥
स्वर रहित मन्त्र
इमा आपः प्र भराम्ययक्ष्मा यक्ष्मनाशनीः। गृहानुप प्र सीदाम्यमृतेन सहाग्निना ॥
स्वर रहित पद पाठइमा: । आप: । प्र । भरामि । अयक्ष्मा: । यक्ष्मऽनाशनी: । गृहान् । उप । प्र । सीदामि । अमृतेन । सह । अग्निना ॥१२.९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 12; मन्त्र » 9
विषय - अयक्ष्म-जल, अमृत अग्निं
पदार्थ -
१. (इमाः) = इन (अयक्ष्मा:) = यक्ष्मा से रहित, (यक्ष्मा) = कृमियों से अनाक्रान्त (यक्ष्मनाशनी:) = यक्ष्मा को, रोग को विनष्ट करनेवाले (आप:) = जलों को (प्रभरामि) = घर में प्राप्त कराती हूँ। २. (अमृतेन) = कभी न मरनेवाले, सदा प्रज्वलित रहनेवाले (अग्निना सह) = यज्ञाग्नि के साथ (गृहान्) = घरों को (उपप्रसीदामि) = समीपता से प्राप्त होती हूँ। घर में यज्ञाग्नि कभी बुझनी नहीं चाहिए-सदा यज्ञ होने ही चाहिएँ।
भावार्थ -
घरों में रोगक्रमियों से अनाक्रान्त जलों की कमी न हो, यज्ञाग्नि कभी बुझे नहीं।
विशेष -
अगले सूक्त में इन जलों का ही वर्णन है। इन जलों को अग्निपक्व करके इनका प्रयोक्ता 'भृगु' [भ्रस्ज पाके] इस सूक्त का ऋषि है -