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अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 109/ मन्त्र 1
सूक्त - अथर्वा
देवता - पिप्पली
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - पिप्पलीभैषज्य सूक्त
पि॑प्प॒ली क्षि॑प्तभेष॒ज्यु॒ताति॑विद्धभेष॒जी। तां दे॒वाः सम॑कल्पयन्नि॒यं जीवि॑त॒वा अल॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठपि॒प्प॒ली । क्षि॒प्त॒ऽभे॒ष॒जी । उ॒त । अ॒ति॒वि॒ध्द॒ऽभे॒ष॒जी । ताम् । दे॒वा: । सम् । अ॒क॒ल्प॒य॒न् । इ॒यम् । जीवि॑त॒वै । अल॑म् ॥१०९.१॥
स्वर रहित मन्त्र
पिप्पली क्षिप्तभेषज्युतातिविद्धभेषजी। तां देवाः समकल्पयन्नियं जीवितवा अलम् ॥
स्वर रहित पद पाठपिप्पली । क्षिप्तऽभेषजी । उत । अतिविध्दऽभेषजी । ताम् । देवा: । सम् । अकल्पयन् । इयम् । जीवितवै । अलम् ॥१०९.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 109; मन्त्र » 1
विषय - क्षिप्तभेषजी अतिविद्धभेषजी
पदार्थ -
१. (पिप्पली) = यह 'कणा' आदि नामोंवाली ओषधि (क्षिप्तभेषजी) = [क्षितानि अन्यानि भेषजानि यया] अन्य सब ओषधियों को तिरस्कृत करनेवाली है-सबसे श्रेष्ठ है, अथवा [क्षिसस्य भेषजी] वातरोगनाशक है (उत) = और (अतिविद्धभेषजी) = [कृत्स्नं रोग अतिविध्यति निपीडयति इति अतिविद्धा, सा चासो भेषज:] सब रोगों का अतिशयेन वेधन करनेवाली औषध है, अथवा 'क्षिस' रोग को दूर करनेवाली है, जिसमें कि रोगी वेदना से हाथ-पैर पटका करता है। यह 'अतिविद्ध' रोग को भी दूर करती है जिसमें जाँघ में तीव्र वेदना होती है। २. (ताम) = उस पिप्पली को (देवा:) = वायु-सूर्य आदि सब देव (समकल्पयन्) = बड़ा शक्तिशाली बनाते हैं। (इयम्) = यह (जीवितवै अलम्) = जिलाने के लिए पर्याप्त है।
भावार्थ -
पिप्पली नामक ओषधि क्षिस व अतिविद्ध' आदि रोगों को दूर करती हुई दीर्घ जीवन का कारण बनती है।
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