Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 112

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 112/ मन्त्र 1
    सूक्त - अथर्वा देवता - अग्निः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - पाशमोचन सूक्त

    मा ज्ये॒ष्ठं व॑धीद॒यम॑ग्न ए॒षां मू॑ल॒बर्ह॑णा॒त्परि॑ पाह्येनम्। स ग्राह्याः॒ पाशा॒न्वि चृ॑त प्रजा॒नन्तुभ्यं॑ दे॒वा अनु॑ जानन्तु॒ विश्वे॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मा । ज्ये॒ष्ठम् । व॒धी॒त् । अ॒यम् । अ॒ग्ने॒ । ए॒षाम् । मू॒ल॒ऽबर्ह॑णात् । परि॑ । पा॒हि॒ । ए॒न॒म् । स: । ग्राह्या॑: । पाशा॑न् । वि । चृ॒त॒ । प्र॒ऽजा॒नन् । तुभ्य॑म् । दे॒वा: । अनु॑ । जा॒न॒न्तु॒ । विश्वे॑ ॥११२.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मा ज्येष्ठं वधीदयमग्न एषां मूलबर्हणात्परि पाह्येनम्। स ग्राह्याः पाशान्वि चृत प्रजानन्तुभ्यं देवा अनु जानन्तु विश्वे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मा । ज्येष्ठम् । वधीत् । अयम् । अग्ने । एषाम् । मूलऽबर्हणात् । परि । पाहि । एनम् । स: । ग्राह्या: । पाशान् । वि । चृत । प्रऽजानन् । तुभ्यम् । देवा: । अनु । जानन्तु । विश्वे ॥११२.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 112; मन्त्र » 1

    पदार्थ -

    १. (अयम्) = यह रोग (एषाम्) = इस परिवार के लोगों में हे (अग्ने ) = परमात्मन्! (ज्येष्ठं मा वधीत्) = विद्या और वय [अवस्था] में बड़े को न मारे। (एनम्) = इस ज्येष्ठ को (मूलबर्हणात्) = रोग के मूल के विनाश व उच्छेद के द्वारा (परिपाहि) = रक्षित कर । २. (प्रजानन्) = ज्ञानी होता हुआ (स:) = वह तू (ग्राह्याः पाशान्) = जकड़ लेनेवाले गठिया आदि रोगों के फन्दों को (विचूत) = खोल डाल। प्रभु तुझे ग्राही के पाशों से मुक्त करें। (विश्वेदेवाः) = सूर्य चन्द्र आदि सब देब (तुभ्यम् अनुजानन्तु) = तुझे अनुज्ञा देनेवाले हों। उनकी अनुज्ञा से तू ग्राही के फन्दों को परे फेंक डाल। सूर्य आदि देवों के सम्पर्क में जीवन बिताने पर ग्राही इत्यादि रोग हमें पीडित नहीं कर पाते।

    भावार्थ -

    प्रभुकृपा से घर का बड़ा व्यक्ति ग्राही इत्यादि रोगों के फन्दे में पड़कर शरीर को छोड़नेवाला न हो। रोगों के मूल के नाश से यह सुरक्षित रहे। सूर्यादि देवों के सम्पर्क में यह इन रोगों से आक्रान्त न हो [अन्य व्यक्ति भी रोगाक्रान्त न हों। सामान्यत: वृद्धावस्था में ये रोग आ घेरते हैं, अत: बड़ों के लिए प्रार्थना की गई है]।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top