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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 30

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 30/ मन्त्र 1
    सूक्त - उपरिबभ्रव देवता - शमी छन्दः - जगती सूक्तम् - पापशमन सूक्त

    दे॒वा इ॒मं मधु॑ना॒ संयु॑तं॒ यवं॒ सर॑स्वत्या॒मधि॑ म॒णाव॑चर्कृषुः। इन्द्र॑ आसी॒त्सीर॑पतिः श॒तक्र॑तुः की॒नाशा॑ आसन्म॒रुतः॑ सु॒दान॑वः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दे॒वा:। इ॒मम् । मधु॑ना । सऽयु॑तम् । यव॑म् । सर॑स्वत्याम् । अधि॑ । म॒णौ। अ॒च॒र्कृ॒षु॒: । इन्द्र॑: । आ॒सी॒त् । सीर॑ऽपति: । श॒ऽक्र॑तु: । की॒नाशा॑: । आ॒स॒न् । म॒रुत॑: । सु॒ऽदान॑व: ॥३०.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवा इमं मधुना संयुतं यवं सरस्वत्यामधि मणावचर्कृषुः। इन्द्र आसीत्सीरपतिः शतक्रतुः कीनाशा आसन्मरुतः सुदानवः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    देवा:। इमम् । मधुना । सऽयुतम् । यवम् । सरस्वत्याम् । अधि । मणौ। अचर्कृषु: । इन्द्र: । आसीत् । सीरऽपति: । शऽक्रतु: । कीनाशा: । आसन् । मरुत: । सुऽदानव: ॥३०.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 30; मन्त्र » 1

    पदार्थ -

    १. (देवा:) = देववृत्ति के पुरुषों ने (इमम्) = इस (मधुना संयुतम्) = माधुर्य से युक्त (यवम्) = जौ को (सरस्वत्याम्) = ज्ञान की अधिष्ठात् देवता के निमित्त तथा (मणौ अधि) = शरीरस्थ वीर्यमणि के निमित्त-वीर्य को शरीर में ही सुरक्षित रखने के हेतु से (अचर्कषु:) = कृषि द्वारा उत्पन्न किया  है। जौ ही देवों का भोजन है। ('यु मिश्रणामिश्रणयोः') = से बना 'यव' शब्द यह संकेत कर रहा है कि यह 'बुराइयों को दूर करनेवाला व अच्छाइयों को मिलानेवाला है।' २. इस यव को उत्पन्न करनेवालों में (सीरपति:) = हल का स्वामी (इन्द्र:) = इन्द्र आसीत्-था। इस यव का उत्पादक जितेन्द्रिय पुरुष होता है। (शतक्रतुः) = यह शत वर्षपर्यन्त यज्ञमय जीवनवाला हुआ। यव सात्विक भोजन है। इस सात्त्विक आहार से बुद्धि की सात्त्विकता के कारण जीवन को यज्ञमय बनना स्वाभाविक ही है। (कीनाश:) = श्रमपूर्वक हल चलानेवाले किसान, (मरुत:) = मितराबी-कम बोलनेवाले-क्रियाशील पुरुष (आसन्) = थे। ये (सुदानव:) = अच्छी प्रकार बुराइयों को काटनेवाले हुए [दाप लवने]। आहार के शुद्ध होने पर अन्त:करण की पवित्रता से सब वासना-ग्रन्थियों का प्रणाश हो ही जाता है।

    भावार्थ -

    जी ही सर्वोत्तम अन्न है। यह उत्तम मस्तिष्क का निर्माण करता हुआ ज्ञानवृद्धि का कारण बनता है। वीर्य-रक्षण में यह सहायक है। इसका सेवन करनेवाला 'जितेन्द्रिय, यज्ञशील, मितरावी व अशुभों को काटनेवाला' बनता है।

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