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अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 96/ मन्त्र 1
सूक्त - भृग्वङ्गिरा
देवता - वनस्पतिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - चिकित्सा सूक्त
या ओष॑धयः॒ सोम॑राज्ञीर्ब॒ह्वीः श॒तवि॑चक्षणाः। बृह॒स्पति॑प्रसूता॒स्ता नो॑ मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥
स्वर सहित पद पाठया: । ओष॑धय: । सोम॑ऽराज्ञी: । ब॒ह्वी: । श॒तऽवि॑चक्षणा: । बृह॒स्पति॑ऽप्रसूता: । ता: । न॒: । मु॒ञ्च॒न्तु॒ । अंह॑स: ॥९६.१॥
स्वर रहित मन्त्र
या ओषधयः सोमराज्ञीर्बह्वीः शतविचक्षणाः। बृहस्पतिप्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्वंहसः ॥
स्वर रहित पद पाठया: । ओषधय: । सोमऽराज्ञी: । बह्वी: । शतऽविचक्षणा: । बृहस्पतिऽप्रसूता: । ता: । न: । मुञ्चन्तु । अंहस: ॥९६.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 96; मन्त्र » 1
विषय - सोमराज्ञी', ओषधयः
पदार्थ -
१. (या:) = जो (सोमराज्ञी:) = सोम ओषधि जिनकी मुखिया है, ऐसी (बही:) = बहुत-सी (शतवि चक्षणा:) = शतवर्षपर्यन्त हमारा ध्यान करनेवाली (ओषधयः) = ओषधियाँ हैं, ऐसी (ता:) = वे ओषधियाँ (बृहस्पतिप्रसूता:) = उस सर्वज्ञ प्रभु से पैदा की गई तथा ज्ञानी वैद्य से प्रयुक्त हुई-हुई (न:) = हमें (अंहसः मुञ्चन्तु) = कष्टों से मुक्त करें।
भावार्थ -
प्रभु ने संसार में विविध ओषधियों को जन्म दिया है। सोमलता इनमें प्रमुख है। इन ओषधियों का ठीक प्रयोग हमें सब कष्टों से मुक्त करता है।
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