Sidebar
अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 69/ मन्त्र 1
शं नो॒ वातो॑ वातु॒ शं न॑स्तपतु॒ सूर्यः॑। अहा॑नि॒ शं भ॑वन्तु नः॒ शं रात्री॒ प्रति॑ धीयतां शमु॒षा नो॒ व्यु॑च्छतु ॥
स्वर सहित पद पाठशम् । न॒: । वात॑: । वा॒तु॒ । शम् । न॒: । त॒प॒तु॒ । सूर्य॑: । अहा॑नि। शम् । भ॒व॒न्तु॒। न॒: । शम् । रात्री॑ । प्रति॑ । धी॒य॒ता॒म् । शम् । उ॒षा: । न॒: । वि । उ॒च्छ॒तु॒ ॥७२.१॥
स्वर रहित मन्त्र
शं नो वातो वातु शं नस्तपतु सूर्यः। अहानि शं भवन्तु नः शं रात्री प्रति धीयतां शमुषा नो व्युच्छतु ॥
स्वर रहित पद पाठशम् । न: । वात: । वातु । शम् । न: । तपतु । सूर्य: । अहानि। शम् । भवन्तु। न: । शम् । रात्री । प्रति । धीयताम् । शम् । उषा: । न: । वि । उच्छतु ॥७२.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 69; मन्त्र » 1
विषय - 'वायु, सूर्य, दिन-रात व उषा' सब 'शम्' हों
पदार्थ -
१. (वात:) = यह बहनेवाला वायु (नः शम्) = हमारे लिए शान्तिकर होकर, (वातु) = प्रवाहित हो। (सूर्यः) = सबको कर्मों में प्रेरित करनेवाला सूर्य (नः शं तपतु) = हमारे लिए शान्तिकर दीतिवाला हो। (अहानि) = दिन (नः शं भवन्तु) = हमारे लिए शान्तिकर हों। (रात्री) = रात (शं प्रतिधीयताम्) = सुख को हमारे साथ संहित करे [संदधातु] अथवा सुखकर होकर धारण की जाए। (उ) = और (उषा:) = उषा (शं) = शान्तिकर होती हुई (नः) = हमारे लिए (व्युच्छतु) = [विवासित] प्रकाशित हो।
भावार्थ -
सरस्वती के आराधन के परिणामस्वरूप हमारे लिए 'वायु, सूर्य, दिन व रात तथा उषाकाल' सब शान्ति देनेवाले हों।
सरस्वती-आराधक यह शान्त व स्थिरवृत्ति का व्यक्ति अथर्वा' बनता है। अगले चार सूक्तों का यही ऋषि है -
इस भाष्य को एडिट करें