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अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 79/ मन्त्र 3
आग॒न्रात्री॑ स॒ङ्गम॑नी॒ वसू॑ना॒मूर्जं॑ पु॒ष्टं वस्वा॑वे॒शय॑न्ती। अ॑मावा॒स्यायै ह॒विषा॑ विधे॒मोर्जं॒ दुहा॑ना॒ पय॑सा न॒ आग॑न् ॥
स्वर सहित पद पाठआ । अ॒ग॒न् । रात्री॑ । स॒म्ऽगम॑नी । वसू॑नाम् । ऊर्ज॑म् । पु॒ष्टम् । वसु॑ । आ॒ऽवे॒शय॑न्ती । अ॒मा॒ऽवा॒स्या᳡यै । ह॒विषा॑ । वि॒धे॒म॒ । ऊर्ज॑म् । दुहा॑ना । पय॑सा । न॒: । आ । अ॒ग॒न् ॥८४.३॥
स्वर रहित मन्त्र
आगन्रात्री सङ्गमनी वसूनामूर्जं पुष्टं वस्वावेशयन्ती। अमावास्यायै हविषा विधेमोर्जं दुहाना पयसा न आगन् ॥
स्वर रहित पद पाठआ । अगन् । रात्री । सम्ऽगमनी । वसूनाम् । ऊर्जम् । पुष्टम् । वसु । आऽवेशयन्ती । अमाऽवास्यायै । हविषा । विधेम । ऊर्जम् । दुहाना । पयसा । न: । आ । अगन् ॥८४.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 79; मन्त्र » 3
विषय - 'वसूनां संगमनी' अमावास्या
पदार्थ -
१. यह (रात्री) = अमावास्या-काल-युक्ता रात्रि (आगन्) = हमें प्राप्त हुई है। हमने अपने जीवन में सूर्य व चन्द्र का समन्वय किया है। यह रात्रि (वसूनां संगमनी) = सब वसुओं-धनों का हमारे साथ मेल करनेवाली है तथा यह (ऊर्जम्) = बल व प्राणशक्ति को (पुष्टम्) = सब अंगों के पोषण को तथा (वसु) = धन को (आवेशयन्ती) = हमारे अभिमुख प्राप्त कराती हुई आती है। २. इस (अमावास्यायै) = अमावास्या के लिए-अपने जीवन में सूर्य-चन्द्र के समन्वय के लिए (हविषा विधेम) = हवि द्वारा हम पूजन करते हैं। यज्ञशील बनने पर ही प्रभुकृपा से अमावास्या का हमारे जीवनों में प्रवेश होता है। (ऊर्ज दुहाना) = बल व प्राणशक्ति का हममें प्रपूरण करती हुई यह (पयसा) = सब शक्तियों के आष्यायन के साथ (नः आगन्) = हमें प्रास होती है।
भावार्थ -
यज्ञों के द्वारा प्रभु-पूजन होने पर हमारे जीवनों में अमावास्या का आगमन होता है, हमारे जीवनों में सूर्य-चन्द्र का समन्वय, तेजस्विता व सौम्यता का मेल होता है। ऐसा होने पर हमें 'बल, प्राणशक्ति, पोषण, वसु व अंगो का आप्यायन' प्राप्त होता है।
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