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अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 79/ मन्त्र 2
अ॒हमे॒वास्म्य॑मावा॒स्या॒ मामा व॑सन्ति सु॒कृतो॒ मयी॒मे। मयि॑ दे॒वा उ॒भये॑ सा॒ध्याश्चेन्द्र॑ज्येष्ठाः॒ सम॑गच्छन्त॒ सर्वे॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒हम् । ए॒व । अ॒स्मि॒ । अ॒मा॒ऽवा॒स्या᳡ । माम् । आ । व॒स॒न्ति॒ । सु॒ऽकृ॒त॑: । मयि॑ । इ॒मे । मयि॑ । दे॒वा: । उ॒भये॑ । सा॒ध्या: । च॒ । इन्द्र॑ऽज्येष्ठा: । सम् । अ॒ग॒च्छ॒न्त॒ । सर्वे॑ ॥८४.२॥
स्वर रहित मन्त्र
अहमेवास्म्यमावास्या मामा वसन्ति सुकृतो मयीमे। मयि देवा उभये साध्याश्चेन्द्रज्येष्ठाः समगच्छन्त सर्वे ॥
स्वर रहित पद पाठअहम् । एव । अस्मि । अमाऽवास्या । माम् । आ । वसन्ति । सुऽकृत: । मयि । इमे । मयि । देवा: । उभये । साध्या: । च । इन्द्रऽज्येष्ठा: । सम् । अगच्छन्त । सर्वे ॥८४.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 79; मन्त्र » 2
विषय - अमावास्या
पदार्थ -
१. (अहम्) = मैं (एव) = ही अमावास्या (अस्मि) = 'अमावास्या' हूँ। (सुकृतः माम् आवसन्ति) उत्तम कर्मोंवाले देव मुझमें निवास करते हैं। ('आ मा वसन्ति देवाः') = यही तो अमावास्या शब्द की निरुक्ति है। (मयि इमे) = ये देव मुझमें निवास करते हैं, अतः मैं अमावास्या हूँ। २. (साध्याः च) []'च' शब्दः समुच्चये, सिद्धाः अपि] - साध्य और सिद्ध उभये दोनों ही (इन्द्रज्येष्ठाः) = इन्द्र प्रमुख (सर्वे देवा:) = सब देव (मयि समगच्छन्त) = मुझमें संगत होते हैं। इसप्रकार 'माम् आ वसन्ति देवाः ' 'मयि निवसन्ति यष्टव्यत्वेन' 'मयि संगच्छन्ते' यही अमावास्या शब्द का निर्वचन है। २. जिस समय हमारे जीवनों में 'तेजस्विता व सौम्यता' का, 'प्रकाश व आह्लाद' का समन्वय होता है तब सब दिव्य गुणों का विकास होता है। यही अमावास्या में देवों का निवास है। इस घर में सब देववृत्ति के मार्ग पर अग्रसर होते हैं। जिन्होंने अभी चलना प्रारम्भ किया है वे 'साध्य' व्यक्ति 'इन्द' हैं। इसप्रकार यह स्वर्ग बन जाता है |
भावार्थ -
अमावस्या का उपदेश यही है कि एक घर में छोटे बड़े तथा घर के मुख्य व्यक्ति सब मिल कर उत्तम कर्मों को करते हुए यज्ञशील बने और घर को स्वर्ग बनाएँ|
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