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  • यजुर्वेद - अध्याय 30/ मन्त्र 5
    ऋषिः - नारायण ऋषिः देवता - परमेश्वरो देवता छन्दः - स्वराडतिशक्वरी स्वरः - पञ्चमः
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    ब्रह्म॑णे ब्राह्म॒णं क्ष॒त्राय॑ राज॒न्यं म॒रुद्भ्यो॒ वैश्यं॒ तप॑से॒ शू॒द्रं तम॑से॒ तस्क॑रं नार॒काय॑ वीर॒हणं॑ पा॒प्मने॑ क्ली॒बमा॑क्र॒याया॑ऽअयो॒गूं कामा॑य पुँश्च॒लूमति॑क्रुष्टाय माग॒धम्॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ब्रह्म॒णे। ब्रा॒ह्म॒णम्। क्ष॒त्राय॑। रा॒ज॒न्य᳖म्। म॒रुद्भ्य॒ इति॑ म॒रुद्ऽभ्यः॑। वैश्य॑म्। तप॑से। शू॒द्रम्। तम॑से। तस्क॑रम्। ना॒र॒काय॑। वी॒र॒हणाम्। वी॒र॒हन॒मिति॑ वीर॒ऽहन॑म्। पा॒प्मने॑। क्ली॒बम्। आ॒क्र॒याया॒ इत्या॑ऽऽक्र॒यायै॑। अ॒यो॒गूम्। कामा॑य। पुं॒श्च॒लूम्। अति॑क्रुष्टा॒येत्यति॑ऽक्रुष्टाय। मा॒ग॒धम् ॥५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ब्रह्मणे ब्राह्मणङ्क्षत्राय राजन्यम्मरुद्भ्यो वैश्यन्तपसे शूद्रन्तमसे तस्करन्नारकाय वीरहणम्पाप्मने क्लीबमाक्रयायाऽअयोगूङ्कामाय पुँश्चलूमतिक्रुष्टाय मागधम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    ब्रह्मणे। ब्राह्मणम्। क्षत्राय। राजन्यम्। मरुद्भ्य इति मरुद्ऽभ्यः। वैश्यम्। तपसे। शूद्रम्। तमसे। तस्करम्। नारकाय। वीरहणाम्। वीरहनमिति वीरऽहनम्। पाप्मने। क्लीबम्। आक्रयाया इत्याऽऽक्रयायै। अयोगूम्। कामाय। पुंश्चलूम्। अतिक्रुष्टायेत्यतिऽक्रुष्टाय। मागधम्॥५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 30; मन्त्र » 5
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    भावार्थ -
    ( १ ) ( ब्रह्मणे ब्राह्मणम् ) ब्रह्म,परमेश्वर की उपासना, ब्रह्म "ज्ञान, वेदाध्ययन, अध्यापन के लिये 'ब्राह्मण' ब्रह्मवेत्ता, वेदज्ञ विद्वान् को नियुक्त करो । ( २ ) ( क्षत्राय राजन्यम् ) प्रजा को विनष्ट होने के बचाने, स्वराज्य पालन और वीर्य पराक्रम के लिये 'राजन्य', श्रेष्ठ राजा को नियुक्त करो। (३) ( मरुद्भ्यः वैश्यम् ) मनुष्यों के हित के लिये, उनके अन्न आदि उत्पन्न करने, गोपालन और प्रदान और नाना व्यवसायों के लिये ( वैश्यम् ) वैश्य को नियुक्त करो । ( ४ ) (तपसे) श्रम के कार्य के लिये ( शूद्रम् ) शीघ्र गति से जाने वाले, श्रमशील पुरुष को नियुक्त करो । [ ५-३० ] ब्रह्मण ब्राह्मणमिति द्व कण्डिके, 'तपसे' ० नुवाकश्च ( इत्य- ध्यायपरिसमाप्तपर्यन्त ऽनुवाकश्च ),ब्राह्मणम्इति सर्वानुक्रमणिका । (५) (तमसे) अन्धकार के भीतर कार्य करने के लिये ( तस्करम् ) जो उसमें कार्य करने में समर्थ है उसे नियुक्त करो । ( ६ ) ( नारकाय वीरह- णम् ) नीचे की योनि नीच स्तर के कष्ट भोगने के लिये ( वीरहणम् ) पुत्रों और वीर्यवान् पुरुषों के नाश करने वाले को पकड़ो। (७) (पाप्मने क्लीबम् ) पाप को नष्ट करने के लिये 'क्लोब' शक्तिहीन पुरुष को नियुक्त: करो कि वह पाप कर ही न सके अथवा पाप पर विजय करने के लिये क्कीब का अनुकरण करो, अर्थात् पाप के प्रति स्वतः नपुंसक के समान उदासीन होकर रहे । ( ८ ) ( आक्रयाय अयोगूम् ) सब प्रकार के पदार्थों के क्रय-विक्रय करने के लिये 'अयोगू' अर्थात् चांदी सोने के परिमाण, सिक्कों की गणना और व्यवहार- विज्ञ पुरुष को नियुक्त करो । ( ९ ) ( कामाय पुंश्चलूम् ) काम के उपभोग में गिरने के निमित्त पुरुषों मैं अति चंचल स्वभाव के पुरुष या स्त्री को दोपयुक्त जानो । (१०) ( अतिक्रष्टाय मागधम् ) अति राग से आलाप करने के लिये 'मागध' को उपयुक्त जानो । शत० १३ । ६ । २ । १० ॥

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