Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 2 > सूक्त 1

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 2/ सूक्त 1/ मन्त्र 3
    सूक्त - वेनः देवता - ब्रह्मात्मा छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - परमधाम सूक्त

    स नः॑ पि॒ता ज॑नि॒ता स उ॒त बन्धु॒र्धामा॑नि वेद॒ भुव॑नानि॒ विश्वा॑। यो दे॒वानां॑ नाम॒ध एक॑ ए॒व तं सं॑प्र॒श्नं भुव॑ना यन्ति॒ सर्वा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । न॒: । पि॒ता । ज॒नि॒ता । स: । उ॒त । बन्धु॑: । धामा॑नि । वे॒द॒ । भुव॑नानि । विश्वा॑ । य: । दे॒वाना॑म् । ना॒म॒ऽध: । एक॑: । ए॒व । तम् । स॒म्ऽप्र॒श्नम् । भुव॑ना । य॒न्ति॒ । सर्वा॑ ॥१.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स नः पिता जनिता स उत बन्धुर्धामानि वेद भुवनानि विश्वा। यो देवानां नामध एक एव तं संप्रश्नं भुवना यन्ति सर्वा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । न: । पिता । जनिता । स: । उत । बन्धु: । धामानि । वेद । भुवनानि । विश्वा । य: । देवानाम् । नामऽध: । एक: । एव । तम् । सम्ऽप्रश्नम् । भुवना । यन्ति । सर्वा ॥१.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 3

    भावार्थ -
    (सः) वह परमात्मा ( नः ) हमारा ( पिता ) पालक ( जनिता ) और उत्पादक है ( स उत ) और वह ही हमारा ( बन्धुः ) सबको प्रेम में बांधने वाला सहायक है, वह (विश्वा) समस्त ( धामानि ) धारण सामर्थ्यों, स्थानों, नामों और मूलकारणों को और ( भुवनानि ) समस्त उत्पन्न होने हारे लोकों, पदार्थों को (वेद) जानता है । ( यः ) जो स्वयं ( देवानां ) समस्त देवों, दिव्यगुण वाले पदार्थों के (नामधः) नामों को भी स्वयं ही सर्वगुणसम्पन्न होने के कारण धारण करने हारा (एक एव) एक अद्वितीय है । (संप्रश्नं) उत्तम रीति से गुरु के समीप शिष्य रूप से प्रश्न कर उसके उपदेश से जानने योग्य ( तं ) उस परमात्मा को ही ( सर्वा ) समस्त ( भुवना ) लोक और समस्त भूतवर्ग ( यन्ति ) प्राप्त होते हैं अर्थात् उसी में प्रलयकाल में लीन होते हैं।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - वेन ऋषिः । ब्रह्मात्मा देवता । १, २, ४ त्रिष्टुभः | ३ जगती । चतुर्ऋचं सूक्तम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top