अथर्ववेद - काण्ड 2/ सूक्त 16/ मन्त्र 5
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - प्राणः, अपानः, आयुः
छन्दः - द्विपदासुरी गायत्री
सूक्तम् - सुरक्षा सूक्त
विश्व॑म्भर॒ विश्वे॑न मा॒ भर॑सा पाहि॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठविश्व॑म् ऽभर । विश्वे॑न । मा॒ । भर॑सा । पा॒हि॒ । स्वाहा॑ ॥१६.५॥
स्वर रहित मन्त्र
विश्वम्भर विश्वेन मा भरसा पाहि स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठविश्वम् ऽभर । विश्वेन । मा । भरसा । पाहि । स्वाहा ॥१६.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 16; मन्त्र » 5
विषय - रक्षा की प्रार्थना।
भावार्थ -
हे (विश्वम्भर) समस्त संसार के भरण पोषण करने हारे परमात्मन् ! (मा) मुझे (विश्वेन) समस्त (भरसा) पोषण शक्ति से (पाहि) पालन कर, (स्वाहा) ऐसी उत्तम प्रार्थना स्वयं करनी चाहिये ।
टिप्पणी -
आयुष्काम अर्थात्, दीर्घ आयु चाहने वाला पुरुष इस सूक्त का मनन किया करे।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ब्रह्मा ऋषिः। प्राणापानौ आयुश्च देवताः। १, ३ एकपदा आसुरी त्रिष्टुप्। एकपदा आसुरी उष्णिक्। ४, ५ द्विपदा आसुरी गायत्री। पञ्चर्चं सूक्तम्॥
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