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अथर्ववेद > काण्ड 4 > सूक्त 16

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  • अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 16/ मन्त्र 9
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - वरुणः छन्दः - त्रिपान्महाबृहती सूक्तम् - सत्यानृतसमीक्षक सूक्त

    तैस्त्वा॒ सर्वै॑र॒भि ष्या॑मि॒ पाशै॑रसावामुष्यायणामुष्याः पुत्र। तानु॑ ते॒ सर्वा॑ननु॒संदि॑शामि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तै: । त्वा॒ । सर्वै॑: । अ॒भि । स्या॒मि॒ । पाशै॑: । अ॒सौ॒ । आ॒मु॒ष्या॒य॒ण॒ । अ॒मु॒ष्या॒: । पु॒त्र॒ । तान् । ऊं॒ इति॑ । ते॒ । सर्वा॑न् । अ॒नु॒ऽसंदि॑शामि ॥१६.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तैस्त्वा सर्वैरभि ष्यामि पाशैरसावामुष्यायणामुष्याः पुत्र। तानु ते सर्वाननुसंदिशामि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तै: । त्वा । सर्वै: । अभि । स्यामि । पाशै: । असौ । आमुष्यायण । अमुष्या: । पुत्र । तान् । ऊं इति । ते । सर्वान् । अनुऽसंदिशामि ॥१६.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 16; मन्त्र » 9

    भावार्थ -
    राजा दण्ड देने के समय अपराधी का नाम, माता और पिता के नाम सहित लिख कर दण्ड दे और दण्ड की आज्ञा इस प्रकार दे—हे (अमुष्याः पुत्र) अमुक माता के पुत्र ! और हे (आमुष्यायण) अमुक गोत्र और वंश के उत्पन्न पुरुष ! (त्वां) तुझको तेरे अपराध के निमित्त (तैः) उन २ (सर्वैः) सब (पाशैः) दण्डों, बन्धन-व्यवस्थाओं अर्थात् धाराओं से (अभि-स्यामि) सबके समक्ष दण्डित करता हूं और (तान्) उन (सर्वान्) सब अधिकारियों या दण्डधरों को (अनु सं-दिशामि) तदनुकूल दण्ड देने की मैं आज्ञा देता हूं। अर्थात् अपराधी की दण्डाज्ञा पर अपराधी के माता पिता का नाम, बाप दादों के वंश या गोत्र का नाम और दण्डधाराओं का उल्लेख हो और जिन अफसरों को वह दण्डार्थ सौंपा जाय उनका भी उल्लेख होना उचित है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ब्रह्मा ऋषिः। सत्यानृतान्वीक्षणसूक्तम्। वरुणो देवता। १ अनुष्टुप्, ५ भुरिक्। ७ जगती। ८ त्रिपदामहाबृहती। ९ विराट् नाम त्रिपाद् गायत्री, २, ४, ६ त्रिष्टुभः। नवर्चं सूक्तम्।

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