अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 33/ मन्त्र 3
प्र यद्भन्दि॑ष्ठ एषां॒ प्रास्माका॑सश्च सू॒रयः॑। अप॑ नः॒ शोशु॑चद॒घम् ॥
स्वर सहित पद पाठप्र । यत् । भन्दि॑ष्ठ: । ए॒षा॒म् । प्र । अ॒स्माका॑स: । च॒ । सू॒रय॑: । अप॑ । न॒: । शोशु॑चत् । अ॒घम् ॥३३.३॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र यद्भन्दिष्ठ एषां प्रास्माकासश्च सूरयः। अप नः शोशुचदघम् ॥
स्वर रहित पद पाठप्र । यत् । भन्दिष्ठ: । एषाम् । प्र । अस्माकास: । च । सूरय: । अप । न: । शोशुचत् । अघम् ॥३३.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 33; मन्त्र » 3
विषय - पाप नाश करने की प्रार्थना।
भावार्थ -
(एषां) इन हमारे समस्त विद्वान् कल्याणकारियों में से (यत्) क्योंकि प्रभो ! आप ही (भन्दिष्ठः) सब से अधिक सुखकारी और कल्याणकारी हैं और (अस्माकासः सूरयः च) हमारे विद्वान् भी कल्याणकारी हैं। उनके संग में रख कर (नः अधम् अप शोशुचत्) हमारे पापों को दूर करो।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ब्रह्मा ऋषिः। पापनाशनोऽग्निर्देवता। १-८ गायत्र्यः। अष्टर्चं सूक्तम्॥
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