अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 23/ मन्त्र 11
ह॒तो राजा॒ क्रिमी॑णामु॒तैषां॑ स्थ॒पति॑र्ह॒तः। ह॒तो ह॒तमा॑ता॒ क्रिमि॑र्ह॒तभ्रा॑ता ह॒तस्व॑सा ॥
स्वर सहित पद पाठह॒त: । राजा॑ । क्रिमी॑णाम् । उ॒त । ए॒षा॒म् । स्थ॒पति॑:। ह॒त: । ह॒त: । ह॒तमा॑ता । क्रिमि॑: । ह॒तऽभ्रा॑ता । ह॒तऽस्व॑सा ॥२३.११॥
स्वर रहित मन्त्र
हतो राजा क्रिमीणामुतैषां स्थपतिर्हतः। हतो हतमाता क्रिमिर्हतभ्राता हतस्वसा ॥
स्वर रहित पद पाठहत: । राजा । क्रिमीणाम् । उत । एषाम् । स्थपति:। हत: । हत: । हतमाता । क्रिमि: । हतऽभ्राता । हतऽस्वसा ॥२३.११॥
अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 23; मन्त्र » 11
विषय - रोगकारी जन्तुओं के नाश का उपदेश।
भावार्थ -
(क्रिमीणां राजा) रोगकारक क्रिमियों का (राजा) मुख्य क्रिमि (हतः) विनाश कर दिया जाय, (उत) और (एषां) इनका (स्थ-पतिः) निवासस्थान का पालक और निर्माता भी (हतः) मार दिया जाय, (हत-माता) उत्पादक क्रिमि के मर जाने पर (हत-भ्राता) उनको पोषण करने वाले क्रिमियों के मर जाने पर अथवा उन के सहचर कीटों के मर जाने पर, (हत-स्वसा) मादा कीटों के नष्ट होजाने पर (क्रिमिहतः) वह समस्त रोग कीटों की नसल नष्ट हो जाती है। शत्रु राजा का विनाश करने के लिये शत्रु राजा को, उसकी माता, भाई और बहनों के मारे जाने पर वह शत्रु भी नष्ट होजाता है।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - कण्व ऋषिः। क्रिमिजम्भनाय देवप्रार्थनाः। इन्द्रो देवता। १-१२ अनुष्टुभः ॥ १३ विराडनुष्टुप। त्रयोदशर्चं सूक्तम्॥
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