अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 23/ मन्त्र 11
ह॒तो राजा॒ क्रिमी॑णामु॒तैषां॑ स्थ॒पति॑र्ह॒तः। ह॒तो ह॒तमा॑ता॒ क्रिमि॑र्ह॒तभ्रा॑ता ह॒तस्व॑सा ॥
स्वर सहित पद पाठह॒त: । राजा॑ । क्रिमी॑णाम् । उ॒त । ए॒षा॒म् । स्थ॒पति॑:। ह॒त: । ह॒त: । ह॒तमा॑ता । क्रिमि॑: । ह॒तऽभ्रा॑ता । ह॒तऽस्व॑सा ॥२३.११॥
स्वर रहित मन्त्र
हतो राजा क्रिमीणामुतैषां स्थपतिर्हतः। हतो हतमाता क्रिमिर्हतभ्राता हतस्वसा ॥
स्वर रहित पद पाठहत: । राजा । क्रिमीणाम् । उत । एषाम् । स्थपति:। हत: । हत: । हतमाता । क्रिमि: । हतऽभ्राता । हतऽस्वसा ॥२३.११॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
छोटे-छोटे दोषों के नाश का उपदेश।
पदार्थ
(एषाम्) इन (क्रिमीणाम्) कीड़ों का (राजा) राजा (हतः) नष्ट होवे, (उत) और (स्थपतिः) द्वारपाल (हतः) नष्ट होवे। (हतमाता) जिसकी माता नष्ट हो चुकी है, (हतभ्राता) जिसका भ्राता नष्ट हो चुका है, और (हतस्वसा) जिसकी बहिन नष्ट हो चुकी है, (क्रिमिः) वह चढ़ाई करनेवाला कीड़ा (हतः) मार डाला जावे ॥११॥
भावार्थ
मनुष्य अपने दोषों और उनके कारणों को उचित प्रकार से समझ कर नष्ट करे, जैसे वैद्य रोगों के प्रधान और गौण कारणों को जानकर उन्हें निवृत्त करता है ॥११॥
टिप्पणी
११−तथा−अ० २।३२।४। (हतः) नाशितो भवतु (राजा) अधिपतिः (क्रिमीणाम्) कीटानाम् (उत) अपि च (एषाम्) उपस्थितानाम् (स्थपतिः) द्वारपालः (हतः) (हतमाता) नष्टमातृकः (क्रिमिः) (हतभ्राता) नष्टमातृकः (हतस्वसा) नष्टभगिनीकः ॥
विषय
कृमि-परिवार विनाश
पदार्थ
१. (कृमीणां राजा इत:) = कृमियों का राजा मारा गया है, (उत) = और (एषां स्थपतिः हतः) = इनका स्थानपति [स्थान के बनानेवाला] कृमि भी मारा गया है। २. (हतमाता) = जिसकी माता मारी गई है, (हतभ्राता) = जिसका भाई मारा गया है, (इतस्वसा) = जिसकी बहिन मारी गई है, वह (क्रिमिः हत:) = कृमि भी मार दिया गया है।
भावार्थ
कृमियों के परिवार-के-परिवार का ही विनाश अभीष्ट है।
भाषार्थ
(हतः) मार दिया है (क्रिमीणाम, राजा) क्रिमियों का राजा, (उत) तथा (एपाम् ) इनका (स्थपतिः) स्थानिकपति (हतः) मार दिया है। (क्रिमिः हतः) क्रिमि मार दिया है, (हतमाता) इसकी माता मार दी है, (हतभ्राता) इसका भाई मार दिया है, (हतस्वसा) इसकी बहिन मार दी है।
टिप्पणी
[राजा, स्थपतिः= मुख्य क्रिमि तथा स्थानिक क्रिमि। माता=मन्त्र ४ में 'दो-दो' का वर्णन हुआ है, नर और मादा का। मादा के पेट से ही सन्तानें पैदा होती हैं। माता मार दी गई तो सन्तानों भी अभाव हो गया। क्रिमियों के पिता का वर्णन राजा और स्थपति द्वारा हुआ है, इन्हें मन्त्र ११ में मार दिया कहा है। तक्मा का भ्राता है बलास, स्वसा है कासिका, भातृव्य है पाप्मा (अथर्व० ५.२२.१३) । सूक्त २२ में तक्मा का वर्णन है और सूक्त २३ में तक्मा के उत्पादक क्रिमियों का। क्रिमि, तक्मा के भी उत्पादक हैं, अत: सूक्त २२ और २३ का परस्पर सम्बन्ध है। स्थपति:=सचिवः (२.३२.४; सायण); तरखान आदि (आप्टे)।]
विषय
रोगकारी जन्तुओं के नाश का उपदेश।
भावार्थ
(क्रिमीणां राजा) रोगकारक क्रिमियों का (राजा) मुख्य क्रिमि (हतः) विनाश कर दिया जाय, (उत) और (एषां) इनका (स्थ-पतिः) निवासस्थान का पालक और निर्माता भी (हतः) मार दिया जाय, (हत-माता) उत्पादक क्रिमि के मर जाने पर (हत-भ्राता) उनको पोषण करने वाले क्रिमियों के मर जाने पर अथवा उन के सहचर कीटों के मर जाने पर, (हत-स्वसा) मादा कीटों के नष्ट होजाने पर (क्रिमिहतः) वह समस्त रोग कीटों की नसल नष्ट हो जाती है। शत्रु राजा का विनाश करने के लिये शत्रु राजा को, उसकी माता, भाई और बहनों के मारे जाने पर वह शत्रु भी नष्ट होजाता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कण्व ऋषिः। क्रिमिजम्भनाय देवप्रार्थनाः। इन्द्रो देवता। १-१२ अनुष्टुभः ॥ १३ विराडनुष्टुप। त्रयोदशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Destruction of Germs
Meaning
Killed is the ruling cause and condition of the germs, destroyed is their colony and the protective cover, killed is their breeder, killed their allies, male and female, all of them are destroyed.
Translation
The king of worms; - the most prominent one, has been destroyed; the one who was the Lord of them has been slain. Also that worm has been slain whose mother, brother and sister-- the whole family, has been annihilated. (Also Av. 11.32.4)
Translation
The King of these worms is killed, and is slain the worm who is their producer and are slain the worm deprived of its mother, deprived of its brother and deprived of its sister.
Translation
The king of worms hath been destroyed, he who was lord of these is slain. Slain is the worm whose mother, whose brother and sister have been slain.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
११−तथा−अ० २।३२।४। (हतः) नाशितो भवतु (राजा) अधिपतिः (क्रिमीणाम्) कीटानाम् (उत) अपि च (एषाम्) उपस्थितानाम् (स्थपतिः) द्वारपालः (हतः) (हतमाता) नष्टमातृकः (क्रिमिः) (हतभ्राता) नष्टमातृकः (हतस्वसा) नष्टभगिनीकः ॥
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