अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 23/ मन्त्र 6
उत्पु॒रस्ता॒त्सूर्य॑ एति वि॒श्वदृ॑ष्टो अदृष्ट॒हा। दृ॒ष्टांश्च॒ घ्नन्न॒दृष्टां॑श्च॒ सर्वां॑श्च प्रमृ॒णन्क्रिमी॑न् ॥
स्वर सहित पद पाठउत् । पु॒रस्ता॑त् । सूर्य॑: । ए॒ति॒ । वि॒श्वऽदृ॑ष्ट: । अ॒दृ॒ष्ट॒ऽहा । दृ॒ष्टान् । च॒ । घ्नन् । अ॒दृष्टा॑न् । च॒ । सर्वा॑न् । च॒ । प्र॒ऽमृ॒णन् । क्रिमी॑न् ॥२३.६॥
स्वर रहित मन्त्र
उत्पुरस्तात्सूर्य एति विश्वदृष्टो अदृष्टहा। दृष्टांश्च घ्नन्नदृष्टांश्च सर्वांश्च प्रमृणन्क्रिमीन् ॥
स्वर रहित पद पाठउत् । पुरस्तात् । सूर्य: । एति । विश्वऽदृष्ट: । अदृष्टऽहा । दृष्टान् । च । घ्नन् । अदृष्टान् । च । सर्वान् । च । प्रऽमृणन् । क्रिमीन् ॥२३.६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
छोटे-छोटे दोषों के नाश का उपदेश।
पदार्थ
(विश्वदृष्टः) सबों करके देखा गया, (अदृष्टहा) अगोचर पदार्थों में गतिवाला (सूर्यः) सूर्य (दृष्टान्) दीखते हुए (च) और (अदृष्टान्) न दीखते हुए (सर्वान्) सब (क्रिमीन्) कीड़ों को (च) अवश्य (घ्नन्) मारता हुआ (च) और (प्रमृणन्) मिटाता हुआ (पुरस्तात्) पूर्व दिशा में (उत् एति) उदय होता है ॥६॥
भावार्थ
जैसे सूर्य अपने प्रकाश से अन्धकार आदि नाश करता है, वैसे ही वैद्य ओषधि द्वारा रोगों को नाश करे ॥६॥
टिप्पणी
६−(उत् एति) उदितो भवति (पुरस्तात्) पूर्व−अस्ताति, पुर् आदेशः। अग्रतः। पूर्वस्यां दिशि (विश्वदृष्टः) सर्वैर्दृष्टः (अदृष्टहा) हन गतौ−क्विप्। अगोचरपदार्थेषु व्यापकः (दृष्टान्) गोचरान् (च) समुच्चये (घ्नन्) नाशयन् (अदृष्टान्) अगोचरान् (च) (सर्वान्) सकलान् (च) अवश्यम् (प्रमृणन्) प्रकर्षेण नाशयन् (क्रिमीन्) कीटान् ॥
विषय
सूर्य-किरणों में
पदार्थ
२. यह (सूर्य:) = सूर्य (पुरस्तात्) = पूर्व दिशा से (उत् एति) = उदित होता है, यह (विश्वदृष्टः) = सबसे देखा गया है, अथवा यह सबको देखनेवाला है-'विश्वं दृष्टं येन'। यह (अदृष्टहा) = अदृष्ट कृमियों का भी नाश करता है। २. (दृष्टान् च अदृष्टान् च) = यह दृष्ट व (अदृष्ट सर्वान् च) = सभी (क्रिमीन्) = कृमियों को (अन्) = नष्ट करता है, (प्रमृणन्) = अपनी किरणों से उन्हें कुचल देता है।
भावार्थ
सूर्योदय होता है और यह उदित होता हुआ सूर्य विश्वदृष्ट होता हुआ दृष्ट व अदृष्ट सब कृमियों को नष्ट कर देता है।
भाषार्थ
(पुरस्तात्) पूर्व की दिशा में (सूर्य: उत् एति) सूर्य उदित होता है; (विश्वदृष्टः) सब द्वारा देखा गया, (अदृष्टहा) अदृष्ट अर्थात् जो दृष्ट नहीं हैं, अतिसूक्ष्म क्रिमि हैं उनका हनन करनेवाला (दूष्टान् च घ्नन्) दृष्ट अभी तक ज्ञात सूक्ष्म-क्रिमियों का हनन करता हुआ तथा (अदृष्टान् च) जो अभी तक अज्ञात हैं (सर्वान् च) उन सब (क्रिमीन्) क्रिमियों को (प्रमृणन्) मारता हुआ।
टिप्पणी
[मन्त्र में दृष्ट और अदृष्ट क्रिमियों के हनन का कथन 'उदीयमान' सूर्य द्वारा हुआ है। सूर्य के उदित होते स्थूल अर्थात् नेत्रों द्वारा दृष्ट, सर्पवृश्चिक आदि हिंस्र क्रिमियों का विनाश दृष्टिगोचर नहीं है, अत: मन्त्र में दृष्ट अर्थात् ज्ञात तथा अदृष्ट अर्थात् अज्ञात हिंस्र क्रिमियों का वर्णन ही प्रतीत होता है जिनका कि हनन उदीयमान सूर्य की रश्मियों द्वारा होना सम्भव है। यथा "उद्यन्नादित्यः क्रिमीन् हन्तु निम्रोचन् हन्तु रश्मिभिः" (अथर्व० २.३२.१), अर्थात् उदित होता हुआ सूर्य क्रिमियों का हनन करे तथा अस्त होता हुआ रश्मियों द्वारा हनन करे यहाँ रश्मियों द्वारा क्रिमियों का हनन कहा है, वह भी उदीयमान तथा अस्तगम्यमान सूर्य की ही रश्मियों द्वारा, न कि मध्यन्दिनगत सूर्य की रश्मियों द्वारा। इन दोनों कालों में सूर्य रश्मियाँ लाल होती हैं, ये क्रिमि-हनन में अत्युपयोगी हैं। इन रक्त रश्मियों द्वारा कीटाणुओं अर्थात् जीव-कीटाणुओं का तो विनाश सम्भव है, सर्प-वृश्चिक आदि का और कीड़ों मकोड़ों आदि का नहीं तथा देखिए (अथर्व० २.३१.१५; तथा २.३२.१-६) ।]
विषय
रोगकारी जन्तुओं के नाश का उपदेश।
भावार्थ
सूर्य चिकित्सा का उपदेश करते हैं। (सूर्यः) सूर्य (उत) भी (पुरस्तात्) ठीक सामने से (एति) आवे और अपना प्रकाश डाले तो वह सूर्य स्वयं (विश्व-दृष्टः) सब के दर्शनगोचर होकर (अदृष्ट-हा) न दीखने वाले रोग-कीटों को नाश करता है, क्योंकि वह अपनी तीक्ष्ण किरणों से तो (दृष्टान् च) दीखने वाले और (अदृष्टान् च) न दीखने वाले (सर्वान् च) और सब (क्रिमीन्) कीटों को (घ्नन्) विनाश करता और (प्र-मृणन्) उच्छेद करता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कण्व ऋषिः। क्रिमिजम्भनाय देवप्रार्थनाः। इन्द्रो देवता। १-१२ अनुष्टुभः ॥ १३ विराडनुष्टुप। त्रयोदशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Destruction of Germs
Meaning
The sun rises in the east as the world watches, it destroys the visible as well as those negativities which are invisible to the naked eye. And it goes on killing and eliminating all worms and germs which are seen or unseen.
Translation
There in the east up rises the sun, seen by all and killer of the unseen, killing the seen as well as the unseen, and crushing all sorts of worms.
Translation
The sun which is visible to all and which destroy the worms invisible, mounts in the east crushing and killing all the worms seen or unseen.
Translation
Eastward the Sun is rising, seen of all, destroying worms unseen, crushing and killing all the worms visible and invisible.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
६−(उत् एति) उदितो भवति (पुरस्तात्) पूर्व−अस्ताति, पुर् आदेशः। अग्रतः। पूर्वस्यां दिशि (विश्वदृष्टः) सर्वैर्दृष्टः (अदृष्टहा) हन गतौ−क्विप्। अगोचरपदार्थेषु व्यापकः (दृष्टान्) गोचरान् (च) समुच्चये (घ्नन्) नाशयन् (अदृष्टान्) अगोचरान् (च) (सर्वान्) सकलान् (च) अवश्यम् (प्रमृणन्) प्रकर्षेण नाशयन् (क्रिमीन्) कीटान् ॥
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