अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 23/ मन्त्र 4
सरू॑पौ॒ द्वौ विरू॑पौ॒ द्वौ कृ॒ष्णौ द्वौ रोहि॑तौ॒ द्वौ। ब॒भ्रुश्च॑ ब॒भ्रुक॑र्णश्च॒ गृध्रः॒ कोक॑श्च॒ ते ह॒ताः ॥
स्वर सहित पद पाठसऽरू॑पौ । द्वौ । विऽरू॑पौ । द्वौ । कृ॒ष्णौ । द्वौ । रोहि॑तौ । द्वौ । ब॒भ्रु: । च॒ । ब॒भ्रुऽक॑र्ण: । च॒ । गृध्र॑ । कोक॑: । च॒ । ते । ह॒ता: ॥२३.४॥
स्वर रहित मन्त्र
सरूपौ द्वौ विरूपौ द्वौ कृष्णौ द्वौ रोहितौ द्वौ। बभ्रुश्च बभ्रुकर्णश्च गृध्रः कोकश्च ते हताः ॥
स्वर रहित पद पाठसऽरूपौ । द्वौ । विऽरूपौ । द्वौ । कृष्णौ । द्वौ । रोहितौ । द्वौ । बभ्रु: । च । बभ्रुऽकर्ण: । च । गृध्र । कोक: । च । ते । हता: ॥२३.४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
छोटे-छोटे दोषों के नाश का उपदेश।
पदार्थ
(द्वौ) दो (सरूपौ) एक से रूपवाले, (द्वौ) दो (विरूपौ) विरुद्ध रूपवाले, (द्वौ) दो (कृष्णौ) काले, (द्वौ) दो (रोहितौ) लाल (च) और (बभ्रुः) भूरा (च) और (बभ्रुकर्णः) भूरे कानवाला और (गृध्रः) गिद्ध, (च) और (कोकः) भेड़िया, (ते) वे सब (हताः) मारे गये ॥४॥
भावार्थ
मनुष्य नाना आकारवाले कृमियों के समान नाना प्रकार की कुवासनाओं का नाश करें ॥४॥
टिप्पणी
४−(सरूपौ) समानाकारौ (द्वौ) क्रिमी (विरूपौ) विरुद्धरूपौ (द्वौ) (कृष्णौ) कृषेर्वर्णे। उ० ३।४। इति कृष विलेखने−नक्। श्यामवर्णौ (द्वौ) (रोहितौ) रक्तवर्णौ (बभ्रुः) पिङ्गलवर्णः (बभ्रुकर्णः) पिङ्गलश्रोत्रः (गृध्रः) सुसूधाञ्गृधिभ्यः क्रन्। उ० २।२४। इति गृधु अभिकाङ्क्षायाम्−क्रन्। गृध्र आदित्यो भवति गृध्यतेः स्थानकर्मणः... गृध्राणीन्द्रियाणि गृध्यतेर्ज्ञानकर्मणः−निरु० १४।१३। गृधाकारः क्रिमिः (कोकः) कुक आदाने−पचाद्यच्। वृकाकारः क्रिमिः (च) (ते) क्रिमयः (हताः) नाशिताः ॥
विषय
विविध कृमि
पदार्थ
१. (सरूपौ द्वौ) = दो कृमि एकदम समान रूपवाले हैं-भिन्न-भिन्न रोगों का कारण बनते हैं, परन्तु उनका रूप एकदम मिलता-सा है। (विरूपी द्वौ) = दो कृमि भिन्न-भिन्न रूपोंवाले हैं-एक ही रोग का कारण बनते हैं, परन्तु हैं रूप में अलग-अलग। (द्वौ कृष्णौ) = दो कृष्णवर्ण कृमि है, (द्वौ रोहितौ) = दो लाल रंग के हैं-ये विविध रोगों को उत्पन्न करते हैं, २. (बभुः च बभुकर्णः च) = एक भूरे रंग का है और एक भूरे कानवाला है, (गृधः च) = एक मांस खा जाने का लोभी सा है तो (कोक: च) = एक दूसरा खून को पी जानेवाला है [कुक आदाने] (ते हताः) = [सूर्य किरणों के सेवन व वचा के प्रयोग से] वे सब मारे गये हैं।
भावार्थ
संसार में विविध प्रकार के कृमि हैं, नीरोगता के लिए उन सबका विनाश आवश्यक है।
भाषार्थ
(सरूपौ द्वौ) एक जैसी रूपाकृतिवाले दो, (विरूपौ द्वौ) विभिन्न-रूपोंवाले दो, (कृष्णौ१ द्वौ) काले दो, (रोहितौ द्वौ) लाल दो, (बभ्रुः च, बभ्रुकर्णः च) भूरा और भूरे कर्णवाला (गृध्र:) गीध अर्थात् लोभी, (कोक:) खा जानेवाला [क्रिमि] (ते) वे (हताः) मार दिए हैं।
टिप्पणी
['द्वौ' द्वारा 'जोड़ा' रूपाकृति, क्रिमियों का वर्णन किया है, जोकि नर-मादा रूप हैं (मन्त्र १३)। गृध्रः=गृध्र अभिकांक्षायाम् (दिवादिः), मांस और रुधिर चाहनेवाला क्रिमि, न कि गीधपक्षी। कोक:= कुक वृक आदाने (भ्वादिः)। ये सब germs हैं।] [१. कृष्णौ द्वौ=सम्भवत: नाड़ियों के काले खून को पीनेवाले नर-मादा रूप दो कीटाणु। रोहिती द्वौ= सम्भवत: नाडियों के लाल खून को पीनेवाले नर मादा रूप दो कीटाणु। नर-मादा रूप में दो-दो ये द्विविध कीटाणु रक्त को शोषित कर, रक्ताल्पता नामक (अनीमिया) रोग को पैदा कर देते हैं। ये दो-दो क्रिमि नर-मादा रुप है (मन्त्र १३), इस मन्त्र में सर्वेषाम् तथा सर्वासाम् द्वारा नर और मादा क्रिमि कहे हैं।]
विषय
रोगकारी जन्तुओं के नाश का उपदेश।
भावार्थ
कीटों के रूपों की पहचान बतलाते हैं। (सरूपौ द्वौ) समान रूपवाले दो, (विरूपौ द्वौ) भिन्न २ रूप वाले दो, (कृष्णौ द्वौ) काले या काटने वाले दो, (रोहितौ द्वौ) लाल रंग के या बढ़ने वाले दो, (बभ्रुः च) भूरे वर्ण के (बभ्रु-कर्णः च) और भूरे कान वालें, (गृध्रः) मांस के लोभी और (कोकः च) भेड़िया के स्वभाव के (ते हताः) ये सव विनाश किये जायं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कण्व ऋषिः। क्रिमिजम्भनाय देवप्रार्थनाः। इन्द्रो देवता। १-१२ अनुष्टुभः ॥ १३ विराडनुष्टुप। त्रयोदशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Destruction of Germs
Meaning
The two similar in species, two of different species, two black ones, two red ones, the brown, those with brown tentacles, those that eat the cells, those that devour the cells, all are destroyed.
Translation
Two of the same form, two of different forms, two black, two red, the brown and the brown-eared, the vulture and the wolf, these have been killed.
Translation
Two worms of like from, two of different form, two black colored, two red-colored, the tawny and tawny-eared, that which possesses the nature of eagle and that which treats like wolf--all these worms are killed by the medicine.
Translation
Two worms of like color, two unlike, two colored black, two colored red; the tawny and the tawny-cared worm, vulture and wolf ail have been killed.
Footnote
Vulture and wolf: Worms ferocious in nature like the vulture and wolf.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४−(सरूपौ) समानाकारौ (द्वौ) क्रिमी (विरूपौ) विरुद्धरूपौ (द्वौ) (कृष्णौ) कृषेर्वर्णे। उ० ३।४। इति कृष विलेखने−नक्। श्यामवर्णौ (द्वौ) (रोहितौ) रक्तवर्णौ (बभ्रुः) पिङ्गलवर्णः (बभ्रुकर्णः) पिङ्गलश्रोत्रः (गृध्रः) सुसूधाञ्गृधिभ्यः क्रन्। उ० २।२४। इति गृधु अभिकाङ्क्षायाम्−क्रन्। गृध्र आदित्यो भवति गृध्यतेः स्थानकर्मणः... गृध्राणीन्द्रियाणि गृध्यतेर्ज्ञानकर्मणः−निरु० १४।१३। गृधाकारः क्रिमिः (कोकः) कुक आदाने−पचाद्यच्। वृकाकारः क्रिमिः (च) (ते) क्रिमयः (हताः) नाशिताः ॥
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