अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 23/ मन्त्र 2
अ॒स्येन्द्र॑ कुमा॒रस्य॒ क्रिमी॑न्धनपते जहि। ह॒ता विश्वा॒ अरा॑तय उ॒ग्रेण॒ वच॑सा॒ मम॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒स्य । इ॒न्द्र॒ । कु॒मा॒रस्य॑ । क्रिमी॑न् । ध॒न॒ऽप॒ते॒ । ज॒हि॒ । ह॒ता: । विश्वा॑:। अरा॑तय: । उ॒ग्रेण॑ । वच॑सा । मम॑ ॥२३.२॥
स्वर रहित मन्त्र
अस्येन्द्र कुमारस्य क्रिमीन्धनपते जहि। हता विश्वा अरातय उग्रेण वचसा मम ॥
स्वर रहित पद पाठअस्य । इन्द्र । कुमारस्य । क्रिमीन् । धनऽपते । जहि । हता: । विश्वा:। अरातय: । उग्रेण । वचसा । मम ॥२३.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
छोटे-छोटे दोषों के नाश का उपदेश।
पदार्थ
(धनपते) हे धन के स्वामी (इन्द्र) बड़े ऐश्वर्यवाले वैद्य ! (अस्य) इस (कुमारस्य) कमनीय बालक के (क्रिमीन्) कीड़ों को (जहि) मिटा दे। (मम) मेरे (उग्रेण) प्रचण्ड (वचसा) [वैदिक] वचन से (विश्वाः) सब (अरातयः) वैरी (हताः) मारे गये ॥२॥
भावार्थ
जैसै वैद्य बालक के उदर के कृमिरोग को नाश करता है, वैसे ही मनुष्य ज्ञान के अभ्यास से अज्ञान आदि दोष हटावे ॥२॥
टिप्पणी
२−(अस्य) निर्दिष्टस्य (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् वैद्य (कुमारस्य) अ० ३।१२।३। कमनीयस्य बालकस्य (क्रिमीन्) कीटान् (धनपते) हे धनस्य स्वामिन् (जहि) नाशय (हताः) नाशिताः (विश्वाः) सर्वे (अरातयः) शत्रवः (उग्रेण) प्रचण्डेन (वचसा) विज्ञानवचनेन (मम) मदीयेन ॥
विषय
धनपति इन्द्र
पदार्थ
१. 'इन्द्र' सूर्य का भी नाम है और यह सूर्य सब प्राणदायी धनों का स्वामी है-'प्राण: प्रजानामुदयत्येष सूर्य:'। हे (धनपते) = सब प्राणधनों के स्वामीन् ! (इन्द्र) = सूर्य! (अस्य कुमारस्य) = इस कुमार के (क्रिमीन्) = शरीरस्थ रोग-कृमियों को (जहि) = विनष्ट कर-'उद्यन्नादित्यः क्रिमीन् हन्ति निम्रोचन हन्तु रश्मिभिः'। २. (मम) = मेरे (उग्रेण वचसा) = तेजस्वी वचनों से (विश्वा: अरातयः) = सब शत्रु (हता:) = विनष्ट हो जाते हैं अथवा मुझसे प्रयुक्त की जानेवाली इस उग्र-रोग-कृमियों के लिए भयंकर-वचा औषधि से सब रोग-कृमियों का विनाश हो जाता है।
भावार्थ
सूर्य-किरणों का सेवन कृमि-विनाश के लिए सर्वोत्तम उपचार है। बचा ओषधि का प्रयोग भी कृमि-विनाश के लिए उपयोगी है।
भाषार्थ
(धनपते इन्द्र) धन के स्वामी हे सम्राट् ! (अस्य कुमारस्य) इस कुमारवर्ग के (क्रिमीन्) क्रिमियों का (जहि) हनन कर। (विश्वाः अरातयः) सब क्रिमीरूप शत्रु (मम) मेरे (उग्रेण वचसा) प्रभावशाली कथन द्वारा (हताः) नष्ट हो गये हैं।
टिप्पणी
[इन्द्र=सम्राट् यथा 'इन्द्रश्च सम्राट्' (यजु:० ८.३७)। साम्राज्य के स्वास्थ्याधिकारी का यह वचन है। सम्राट् ने स्वयं तो चिकित्सक बन कर कुमारों के क्रिमियों का हनन नहीं करना, उसकी केवल स्वीकृति होनी है। स्वास्थ्याधिकारी को स्वीकृति मिलते ही वह कहता है कि मेरे प्रभावशाली वचनों के कारण मानों क्रिमि हत हो गये। धन की तो कमी नहीं। सरकारी 'कुमार चिकित्सालयों' की स्थापनाएँ हो जाती हैं, और क्रिमिचिकित्सा प्रारम्भ हो जाती है।
विषय
रोगकारी जन्तुओं के नाश का उपदेश।
भावार्थ
हे (धनपते) समृद्धिसम्पन्न ऐश्वर्यवन् ! (इन्द्र) सूर्य ! वायो ! विद्युत् ! (अस्य) इस (कुमारस्य) बालक के (क्रिमीन्) रोगकारी जन्तुओं को (जहि) तू नाश कर। (मम) मेरे (उग्रेण) बलपूर्वक कहे गये (वचसा) उपदेश या वचन-बल से (विश्वाः अरातयः) सब दुःखकारी पीड़ाएं (हताः) विनष्ट होती हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कण्व ऋषिः। क्रिमिजम्भनाय देवप्रार्थनाः। इन्द्रो देवता। १-१२ अनुष्टुभः ॥ १३ विराडनुष्टुप। त्रयोदशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Destruction of Germs
Meaning
Hey Indra, lord of health and wealth of the world, destroy the disease causing germs of this child’s body system. Let all the negative forces of his body be destroyed by the intense action of the medicines of my prescription. (Indra here may be interpreted as the electric energy of nature or as the physician, and ‘vachas’ as the prescription given by the physician or, as Satavalekara’s suggestion is, the vachas herb of Ayurveda which is highly efficacious for children.)
Translation
O resplendent Lord, master of riches, may you kill the worms of this boy. All the distressing worms have been destroyed by my formidable utterance (or vacasá herb -Acours colamus).
Translation
Let the cloud electricity which is protector of agricultural wealth kill the worm troubling this boy. All the painful worms are killed by the powerful advice of mine, the physician.
Translation
O opulent physician, kill the worms that prey upon this boy. All the malignant worms have been smitten by my potent Vedic word.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(अस्य) निर्दिष्टस्य (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् वैद्य (कुमारस्य) अ० ३।१२।३। कमनीयस्य बालकस्य (क्रिमीन्) कीटान् (धनपते) हे धनस्य स्वामिन् (जहि) नाशय (हताः) नाशिताः (विश्वाः) सर्वे (अरातयः) शत्रवः (उग्रेण) प्रचण्डेन (वचसा) विज्ञानवचनेन (मम) मदीयेन ॥
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