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अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 30

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  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 30/ मन्त्र 13
    सूक्त - चातनः देवता - आयुः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - दीर्घायुष्य सूक्त

    ऐतु॑ प्रा॒ण ऐतु॒ मन॒ ऐतु॒ चक्षु॒रथो॒ बल॑म्। शरी॑रमस्य॒ सम्वि॑दां॒ तत्प॒द्भ्यां प्रति॑ तिष्ठतु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । ए॒तु॒ । प्रा॒ण: । आ । ए॒तु॒ । मन॑: । आ । ए॒तु॒ । चक्षु॑: । अथो॒ इति॑ । बल॑म् । शरी॑रम् । अ॒स्य॒ । सम् । वि॒दा॒म् । तत् । प॒त्ऽभ्याम् । प्रति॑ । ति॒ष्ठ॒तु॒ ॥३०.१३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऐतु प्राण ऐतु मन ऐतु चक्षुरथो बलम्। शरीरमस्य सम्विदां तत्पद्भ्यां प्रति तिष्ठतु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । एतु । प्राण: । आ । एतु । मन: । आ । एतु । चक्षु: । अथो इति । बलम् । शरीरम् । अस्य । सम् । विदाम् । तत् । पत्ऽभ्याम् । प्रति । तिष्ठतु ॥३०.१३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 30; मन्त्र » 13

    भावार्थ -
    इन्द्रियां किस प्रकार शरीर में कार्य करती हैं इसका उपदेश करते हैं। इस शरीर में प्रथम (प्राणः आ एतु) प्राण आता है, फिर (मनः आ एतु) मन, मननशक्ति आती हैं फिर (चक्षुः आ एतु) चक्षु दर्शनशक्ति अर्थात् उपलक्षण से आंख, नाक, कान, जिह्वा आदि इन्द्रियों में ज्ञानशक्ति का आगमन होता है। (अथो बलम्) और उसके पश्चात् बल, प्राणेन्द्रिय, हाथ, पांव, पेट आदि की शक्ति आती हैं। तब (अस्य) इस जीव का (शरीरम्) शरीर (विदां) बुद्धि को (सम्-एतु) प्राप्त होता है। (तत्) तब (पद्भ्यां) पैरों से (प्रति तिष्ठतु) यह शरीर खड़ा होने लगता है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - आयुष्काम उन्मोचन ऋषिः। आयुर्देवता। १ पथ्यापंक्तिः। १-८, १०, ११, १३, १५, १६ अनुष्टुभः। ९ भुरिक्। १२ चतुष्पदा विराड् जगती। १४ विराट् प्रस्तारपंक्तिः। १७ त्र्यवसाना षट्पदा जगती। सप्तदशर्चं सूक्तम्॥

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