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अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 9

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  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 9/ मन्त्र 6
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - वास्तोष्पतिः छन्दः - दैवी त्रिष्टुप् सूक्तम् - आत्मा सूक्त

    पृ॒थि॒व्यै स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पृ॒थि॒व्यै । स्वाहा॑ ॥९.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पृथिव्यै स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पृथिव्यै । स्वाहा ॥९.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 9; मन्त्र » 6

    भावार्थ -
    ४-६ पुनः वही तीन आहुतियां उलट कर दी गयी हैं। सूर्य का सेवन पृथिवी पर लोटना, भ्रमण करना, वायु का सेवन करना इस के अतिरिक्त इन पदार्थों का बार २ यथा रीति सेवन करना स्वस्थता प्राप्त करने का उत्तम उपाय हैं।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ब्रह्मा ऋषिः। वास्तोष्पतिर्देवता। १, ५ देवी बृहत्यौ। २, ६ देवीत्रिष्टुभौ। ३, ४ देवीजगत्यौ। ७ विराडुष्णिक् बृहती पञ्चपदा जगती। ८ पुराकृतित्रिष्टुप् बृहतीगर्भाचतुष्पदा। त्र्यवसाना जगती। अष्टर्चं सूक्तम्॥

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