अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 9/ मन्त्र 3
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - वास्तोष्पतिः
छन्दः - दैवी जगती
सूक्तम् - आत्मा सूक्त
अ॒न्तरि॑क्षाय॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒न्तरि॑क्षाय । स्वाहा॑ ॥९.३॥
स्वर रहित मन्त्र
अन्तरिक्षाय स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठअन्तरिक्षाय । स्वाहा ॥९.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 9; मन्त्र » 3
विषय - स्वास्थ्य लाभ का उपाय।
भावार्थ -
(अन्तरिक्षाय स्वाहा) अन्तरिक्ष, मध्य आकाश, वायुमण्डल की शुद्धि के लिये मैं उत्तम आहुति प्रदान करता हूं। उससे मैं स्वस्थता लाभ करूं।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ब्रह्मा ऋषिः। वास्तोष्पतिर्देवता। १, ५ देवी बृहत्यौ। २, ६ देवीत्रिष्टुभौ। ३, ४ देवीजगत्यौ। ७ विराडुष्णिक् बृहती पञ्चपदा जगती। ८ पुराकृतित्रिष्टुप् बृहतीगर्भाचतुष्पदा। त्र्यवसाना जगती। अष्टर्चं सूक्तम्॥
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