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अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 9

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  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 9/ मन्त्र 7
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - वास्तोष्पतिः छन्दः - विराडुष्णिग्बृहतीगर्भा पञ्चपदा जगती सूक्तम् - आत्मा सूक्त

    सूर्यो॑ मे॒ चक्षु॒र्वातः॑ प्रा॒णो॒न्तरि॑क्षमा॒त्मा पृ॑थि॒वी शरी॑रम्। अ॒स्तृ॒तो नामा॒हम॒यम॑स्मि॒ स आ॒त्मानं॒ नि द॑धे॒ द्यावा॑पृथि॒वीभ्यां॑ गोपी॒थाय॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सूर्य॑: । मे॒ । चक्षु॑: । वात॑: । प्रा॒ण: । अ॒न्तरि॑क्षम् । आ॒त्मा । पृ॒थि॒वी । शरी॑रम् । अ॒स्तृ॒त: । नाम॑ । अ॒हम् । अ॒यम्। अ॒स्मि॒ । स: । आ॒त्मान॑म् । नि । द॒धे॒ । द्यावा॑पृथि॒वीभ्या॑म् । गो॒पी॒थाय॑ ॥९.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सूर्यो मे चक्षुर्वातः प्राणोन्तरिक्षमात्मा पृथिवी शरीरम्। अस्तृतो नामाहमयमस्मि स आत्मानं नि दधे द्यावापृथिवीभ्यां गोपीथाय ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सूर्य: । मे । चक्षु: । वात: । प्राण: । अन्तरिक्षम् । आत्मा । पृथिवी । शरीरम् । अस्तृत: । नाम । अहम् । अयम्। अस्मि । स: । आत्मानम् । नि । दधे । द्यावापृथिवीभ्याम् । गोपीथाय ॥९.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 9; मन्त्र » 7

    भावार्थ -
    मनुष्य अपने शरीर की प्रजापति के विराट् शरीर से तुलना करता है। (सूर्यः मे चक्षुः) जैसे प्रजापति के शरीर में विशाल तेज:-पुञ्ज सूर्य है उसी प्रकार यह मेरे शरीर में चक्षु भी तेजोविकार है, वह सब पदार्थों का प्रत्यक्ष कराती और सूर्य के अंश से जीवित है। (वातः प्राणः) जिस प्रकार विशाल ब्रह्माण्ड में यह वायु गति करता है उसी प्रकार मेरे देह में उसी का अंश यह प्राण है। (अन्तरिक्षम् आत्मा) जिस प्रकार विराट् शरीर में अन्तरिक्ष अर्थात् आकाश वा ज्ञान वाला परमात्मा वास करता है उसी प्रकार मेरे इस शरीर में मध्यभाग वा आत्मा वास करता है। (पृथिवी शरीरम्) जिस प्रकार विराट् शरीर में पृथिवी है उसी प्रकार यह मेरा अधः शरीर चरण भाग है। (अयम्) यह (अहम्) मैं जीवात्मा (अस्तृतः) कभी भी न मरने वाला, अमर हूं (सः) वह मैं (गोपीथाय) रक्षा के लिये (द्यावापृथिवीभ्यां) पिता तथा मातृरूप परमात्मा के प्रति (आत्मानं) अपने आप को सुपुर्द करता हूं, सौंपता हूं।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ब्रह्मा ऋषिः। वास्तोष्पतिर्देवता। १, ५ देवी बृहत्यौ। २, ६ देवीत्रिष्टुभौ। ३, ४ देवीजगत्यौ। ७ विराडुष्णिक् बृहती पञ्चपदा जगती। ८ पुराकृतित्रिष्टुप् बृहतीगर्भाचतुष्पदा। त्र्यवसाना जगती। अष्टर्चं सूक्तम्॥

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